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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Sunday, November 18, 2012

पहाडुंम बागवानी

गढ़वाली हास्य व्यंग्य
हौंसि हौंस मा, चबोड़ इ चबोड़ मा
                   पहाडुंम बागवानी
                       चबोड्या : भीष्म कुकरेती

-- बल भैजि! किलै छंवां रंगताणा जन बुल्यांपुटुं कुंद भौत बड़ी मरोड़ ह्वा उठणि?
--अरे ! त्वे वे क्या पता। क्या च मै पर बितणि?

--बतैल त पता चौल जाल क्वा बात च तुमारि जिकुडि खाणि
-- एक मैना से जादा ह्वे ग्याई मन्योडर नि आई। पुंगड़-पटळ करण सौब बंद छन . त कखन बौड़ाण दुकानदारों अर दीणदारों लेणि देणि?
-भैजि कुछ नयो उद्यम कारो जां से बंद ह्वे जावों सौब रूणी -झाणि

- अरे समज मा नि आंदो बल यूं पाख पखड्यो मा क्या उद्यम ह्वे सकुद जो दे द्याओ चंगर्या भौरि भरपूर रुप्या पाणि
- भैजि ! एक रामबाण छ त छें च जो लै सकद ठुपुर भौरि रुप्या पाणि

- इन जि होंद त किलै भुगतदा हम इख पहाड़ोम या फोकटै रूणी-धाणी अर पैसों टरकणि ?

-बागवानी लगावा , बांज पुंगड्योम फलुं डाळ लगाओ . फल खाओ , फल बि ब्याचो अर फिर द्याखो कन होंद धौं रुप्यों तड़क्वणि !
- अच्छा ! पहाडु कुणि बागवानी ह्वे सकद रामबाण ? क्या बागवानी लै सकदी रुप्यों तड़क्वणि ?
- हाथम धगुल त दिखणो बान ऐना की क्या जर्वत ? कश्मीर द्याखो अर देखि ल्यावदी हिमाचल का सेवो बगीचा
-पण हमर पहाड़ ?

-त जरा पौड़ी गढ़वाल मा खंड, ढागू क सत्य प्रसाद बड़थ्वालौ बागवानी से कमाइ पर नजर त मारो फिर चचलै जैल्या कि बागवानी से कनों हूंद रुप्यों तड़क्वणि!
-हां वो सत्य प्रसाद तै बाग्वानिम हडक तुड़द त दिख्युं च म्यरो। तुमारी बात सै च बागवानी सौकार -धनवान बणानो अणसाळ च
-त फिर तुम किलै छंवां बैठ्याँ ? किलै छंवां तुम बौंहड़ सिंयाँ ?
-ना भै ना ! बांज पुंगड़ो तै हडका तोड़िक नजीलो करुल मि अर खांद दें हिस्सेदारी जमाणों ऐ जाला मेरा द्वी प्रवासी भाई
- पण भाई त तुमारा इ छन . वूंको बि त हक्क च बापदादों जमीन पर ?

-वूंको क्यांक हक ? जमानो से वो शहरों मा मजा करणा छन . रौणि दे अपणि राय अफुम जब पादिक काम चलणो ह्वाओ त हगणो जाणै क्या जरूरत ? हैंक दै नि दे इन मजाकिया राय
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- बल प्रवासी भैजि ! किलै च या उठा पौड़ी ? किलै च भूक-तीस -निंद हर्चीं
- अरे जैक खुट पर खुब्या ह्वा पुड्यू तों डा -दर्द त वै तै इ होंद
- बल प्रवासी भैजि इख शहर मा अछी भलि नौकरि च . बच्चा बि अब हौळ लगाण लैक बल्द ह्वेइ गेन फिर क्यांकि फिकर ?
-अरे चिंता रिटायरमेंटक बादै च कि कनै क्वी काम से समय बि कटि जावो अर दगड़ मा घौर चलाणों रुप्या पाणि बि इंतजाम ह्वे जावो
-अचकाल त इन्वेस्टमेंट .प्लान ..

-अरे पर मीमा इथगा रुपया कख च कि मि इथगा इन्वेस्टमेंट करू सौकु .
-त थ्वडा सि इन्वेस्टमेंट मा अपण बांज पड्या पुंगड़ोम बागवानी लगावो अर रिटायरमेंट क बगत पर रुप्या कमाओ
-सोचि त मीन बि छौ . पण रूप्या लगौं मि अर हिस्सेदारी जमाणों आला मेरा द्वी भाई . ऊं दुयुं तै दीण से बढ़िया त कम खौंलु सुखि रौंलु . हैंक दै नि दे इन मजाकिया राय

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-बल सरकार जी ! सरकार जी ! आप पहाड़ों म बागवानी किलै नि छंवां लगवाणा . बागवानी बडो रोजगार च।
- छोड़ इन बेकार की बात करण . अरे जब उखाक बासिंदों अर प्रवास्युं तै नी च पड़ी कि उख कुछ करे जावो त मै तै गुरान तड़कयूं च जु मि कुछ कौरुं . जन चलणो च तन्नि चलण द्यायो। ज़िंदा कौम की निसाणी कुछ हौर होंद . बेजान मुर्दों तै फूंक मारिक ज़िंदा नि करे जांद

Copyright@ Bhishma Kukreti 19/11/2012

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