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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Sunday, November 18, 2012

जनता बिचारी बलि बेदी च

 कवि- डॉ नरेन्द्र  गौनियाल 

स्वार्थ कि रीति मा,राजकि नीति मा। 
जनता बिचारी, बलि बेदी चढ़ी।।

ढोल कि पोल खुली कि खुली।
आंखि उघाड़ी तू बी देख भुली।।

भाड़ मा जाये जनता फनता।
मुराद हो पूरी यूँका मन की।।

अफु पेट भर्री गळदम सळदम।
भूख मिटे न मिटे जन की।

विकास-विकास की बड़ी बात करीं।
आंख्युं  देखि सब  नाश करीं।।

काम कबी  क्वी करीं न करीं।
खीसौं माँ राशि धरीं ही धरीं।।

चांठों अर चेलों की,कैम्प अर मेलों की।
देखो जख बी भरमार पड़ी।

 मिले न मिले सुविधा कबी क्वी।
 रैगे जनता फिर हाथ ज्वड़ी।

आंख्युं कु खैड़ सी बाखरो बैड़ सी।
रिपु ह्वैगे तुम्हारो,पाणि मा गैड़ सी।।

लागद शूल सी तुम्हारी  जिकुड़ी।
जैन नि करी तुम्हारा मन की।। 

माल़ा हो  गालुंद ट्वपलि हो डालुंद।
तुमारा तरपां देश जाव भ्यालुंद।।

       डॉ  नरेन्द्र गौनियाल सर्वाधिकार सुरक्षित ..narendragauniyal@gmailcom  

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