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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Monday, August 6, 2012

घुघुती : प्रतीकात्मक गढ़वाली कविता

घुघुती : प्रतीकात्मक गढ़वाली कविता

                 जयपाल सिंह रावत गढवाली कविता मा प्रतीकात्मक कवितौं बान जाणे जांद . कविता समालोचक रावत तै प्रतीकात्मक कवितौं बादशाह बुल्दन. जाय पाल सिंह कु कवितौं ख़ास चरित्र च 'छिपडु दादा'. हरेक कविता मा कखि ना कखि छिपडु दादा रौंदी इ च. दगड मा पहाड़ का पंछी, जानवर अर डाळ बूट बि जयपाल का चरित्र छन. यूँ जीव जन्तु अर डाळ बुटु चरित्रों से चबोड़ अर चखन्यौ करण मा जयपाल माहिर कवि च. रावत कु जीवन तै दिखणौ ढंग निराला च . रावत की कवितौं से साफ पता चलद बल जयपाल कु निरीक्षण शक्ति अलग च. जयपाल रावत कु गढवाली कविता मा जानवर, कीड मक्वडु , पंछ्यु , डाल्यु तै मानवीय रूप दीण मा इनी नाम च जन रौबर्ट फ्रोस्ट , ह्यूजेज , विलियम ब्लेक कु च

[भीष्म कुकरेती की गढ़वळि पद्य, गढ़वाली कविताएँ, गढ़वाली गीत, गढ़वाली संगीत, उत्तराखंडी पद्य, उत्तराखंडी गीत, उत्तराखंडी कविताएँ , मध्य हिमालयी पद्य; मध्य हिमालयी गीत, मध्य हिमालयी संगीत , मध्य हिमालयी कविताएँ लेखमाला से ]
 
                        घुघुती 
 
कवि- जय पाल सिंह रावत
 
एक डाळम
घघुती बैठीं छे
छिपडु दादा
छैलम बैठी ग्याई
बल !
हे घघुती !
भूलि ह्या
जरिस
गीत लगा दे
त्यारा बोल
मिठा छिंई
मि थक्युं छौं
मयारू मन
ब्यळमा दे I
घुघुती न ब्वाल
भैजी!
ओ ज़माना गाया
जब गीत लगदा छाया I
मित
अंगरेजी
स्कूलम पढयूँ छौं
सटुल्यूं कि स्कूलमा
टीचर लग्युं छौं
तुम खुणै मि
सुदि हुंयूं छौं ?

Copyright@ reserved with poet and commentator 6/8/2012

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