उत्तराखंडी ई-पत्रिका की गतिविधियाँ ई-मेल पर

Enter your email address:

Delivered by FeedBurner

उत्तराखंडी ई-पत्रिका

उत्तराखंडी ई-पत्रिका

Sunday, August 26, 2012

गढ़वाळी कविता ---****सासु अर ब्वारि ******

 कवि-डॉ नरेन्द्र गौनियाल  

सासु अर ब्वारि कु यु कनु लाम च,
लड़णो-झगड्नो,न कुछ काम च. 
हर दिन- हर रात ककड़ाट हुयूं रैंदा, 
खंडिकी रोटी नि बँटीन्दी यूंतैयी.

सासु लगान्द छवीं अपणा नौना मा,
ब्वारि बैठीं रैंद  दूर तब एक कूण मा.
कनि काळ निरबै मैकू य लगी गया,
पंडजिन कुंडळी किलै इनि य मिसै.

बेटा घर तू जब कबी बि आंदी,
कनि भली तब तू ईंतई पांदी. 
तेरि आणे  खबर जब य पांदा.
म्वरीं बीराळी जनि तब ह्वै जांदा.

घाम औण तक पट्ट सियीं रैंदा,
कनि फसोरिकी निंद अईं रैदा.
उठ ब्वारि उठ ये मि बुनू रैंदो,
चुला मा च्या धैरी छनुड़ा जांदू.

मेरो ब्वल्यां कु असर कुछ नि हून्दो,
क्य जि करूँ मि त ब्वे कखजि ज्वौंऊ.
चुलखंदा जब घाम पट पौंछि जांदा.
आंखि मिन्डीकी तब य उठी पांदा. 

ग्वीलू कैरि छनुड़ा बिटि मि आन्दु.
सुण बेटा घर मा तब क्या पांदु. 
अब त ब्वे मेरि ऐगे गाळ-गाळ. 
इनी आफत अब तू अफु ही समाळ.

च्याऊ बणे अफु य सबि पेयी दींद,
च्यापती कितुलुन्द मैकू रैणि दींद.
कन कैकि रैण मिन अब ईं दगड़,
मेरि कुगत किलै य करणी रैंदा.

मिन बेटा किलै रे तू सैंती-पाळी.
अपणो दूध पिलै किलै तू बड़ो करी.  
मिन नि जाणि बेटा कबी यनु बि हूण.
अपणो भाग को मि अब सोचदू.

कैम बोलूँ यख त मेरो क्वी बि नीं च.
अपणो दुःख अब मी कैतेई सुनौऊ.
इनो बचण से त मी कुट मरी जौं,
सोचणू छौं अब मी कैई ढन्डी पड़ूं.

     डॉ नरेन्द्र गौनियाल सर्वाधिकार सुरक्षित ..narendragauniyal@gmail.com

No comments:

Post a Comment

आपका बहुत बहुत धन्यवाद
Thanks for your comments