उत्तराखंडी ई-पत्रिका की गतिविधियाँ ई-मेल पर

Enter your email address:

Delivered by FeedBurner

उत्तराखंडी ई-पत्रिका

उत्तराखंडी ई-पत्रिका

Sunday, August 26, 2012

रक्तबीज के संहार के लिए आज भी महाकाली को प्रकट होना होगा

 डॉ नरेन्द्र गौनियाल.

देवासुर संग्राम में ''रक्तबीज'' का प्रसंग आज भी प्रासंगिक लगता है.वह एक ऐसा शक्तिशाली राक्षस था,जिसके शरीर से खून की एक-एक बूँद गिरने पर उतने ही समरूप राक्षस (क्लोन)पैदा हो जाते थे.समझा जा सकता है कि उस से लड़ना कितना खतरनाक था. मारने के लिए तलवार,भाले,बरछे से प्रहार करो,काटो तो उसके रक्त की एक-एक बूँद गिरने से सैकड़ों,हजारों,लाखों,करोड़ों राक्षस पैदा हो जाते थे.यह कल्पना ही आश्चर्य,आशंका एवं भय पैदा कर देती है.उसे मारने के प्रयास न हों तो वह लगातार हजारों को खुद मारता रहे.मारो तो परेशानी न मारो तो भी परेशानी.
         वर्तमान में रक्तबीज नमक राक्षस तो बेशक स्वयं मौजूद नहीं है,किन्तु उसके प्रतीक,उसकी अवधारणा,उसका अभिशाप समाज में अस्तित्व बनाये हुए है.रक्तबीज की अवधारणा को समझने के लिए हमें पहले रक्तबीज को समझना होगा,उसके सम्पूर्ण अस्तित्व,व्यक्तित्व को जानना होगा..रक्तबीज एक असुर था-बुराई का प्रतीक.अत्यंत शक्तिशाली-शक्ति का प्रतीक.अत्यंत दुष्ट था-दुष्टता का प्रतीक..क्षण भर में कई गुना बढ़ जाने वाला, मारकर भी न मरने वाला,जितना काटो उतना अधिक फैलने वाला..न काटो तो भी सबको काटने वाला..तब के रक्तबीज की परिकल्पना आज के सन्दर्भ में मौजूद हर बुराई,बुराई के प्रतीक व्यक्ति,परंपरा,रिवाज,आचार-व्यवहार से कर सकते हैं.
         आज हमारे सामाजिक,राजनैतिक,धार्मिक,आध्यात्मिक,आर्थिक क्षेत्रों में एक नहीं अनेक रक्तबीज पैदा होकर दिनों दिन कई गुना बढ़ते जा रहे हैं.इन्हें जितना नष्ट करने की कोशिश हो रही है,उतना ही कई गुना बढ़ते जा रहे हैं.भ्रष्टाचार,महंगाई,नशाखोरी,अनाचार,व्यभिचार,अत्याचार आदि ऐसे कई रक्तबीज के प्रतीक हैं,जो दिनों दिन कई गुना बढ़ रहे हैं.जितना इनका नाश करने की कोशिश होती है,उतना अधिक बढ़ जाते हैं.इन्हें समाप्त करने के प्रयास न हों तो ये समाज,देश,मानव,मानवता को नष्ट करते जा रहे हैं,उनके अस्तित्व के लिए खतरा बनते जा रहे हैं.इन बुराईयों को समाप्त करने की हर कोशिश नाकाम हो रही है.ये भी रक्तबीज की तरह हजारों-लाखों गुना बढ़कर अजर-अमर दिखाई देते हैं.अब संकट है कि  इस समस्या का समाधान कैसे हो.रक्तबीज की प्रतीक इन बुराईयों का कैसे नाश हो?
         देवासुर संग्राम के रक्तबीज का नाश करने के लिए माँ भगवती को  महाकाली का रूप धारण करना पडा.रक्तबीज के रक्त को पीकर पुनः लाखों रक्तबीजों को पैदा होने से रोकना पडा.आज का समाज भी पूरी तरह से ल़ाचार हो चुका है.ये बुराईयाँ शक्तिशाली और व्यापक हो चुकी हैं.मनुष्य इनसे नहीं जीत पा रहा है.देवतुल्य आज का जनसामान्य इन बुराईयों से पीड़ित है.चाहकर भी इनका नाश नहीं कर पा रहा है.तब यदि माँ भगवती ने महाकाली का रूप धारण किया तो क्या आज भगवती स्वरूपा ''नारी शक्ति'' प्रचंड बल के साथ महाकाली के अस्तित्व का बोध नहीं करा सकेगी ? समाज,धर्म,राजनीति,मानव,मानवता को रक्तबीज के प्रतीक भ्रष्टाचार,महंगाई,नशाखोरी,अनाचार,व्यभिचार,अत्याचार जैसी बुराईयों से बचाने के लिए नारीशक्ति को काली का रूप धारण कर आगे आना ही होगा तथा इन्हें समूल नष्ट करना होगा.अन्यथा देश,समाज,मानव तथा मानवता के अस्तित्व के लिए खतरा बढ़ता ही जायेगा.
                                                       डॉ नरेन्द्र गौनियाल..सर्वाधिकार सुरक्षित.narendragauniyal @gmail.com

No comments:

Post a Comment

आपका बहुत बहुत धन्यवाद
Thanks for your comments