उत्तराखंडी ई-पत्रिका की गतिविधियाँ ई-मेल पर

Enter your email address:

Delivered by FeedBurner

उत्तराखंडी ई-पत्रिका

उत्तराखंडी ई-पत्रिका

Sunday, August 12, 2012

हूण खाणे आस

पंडित भोगीराम जि अपण इलाका का जन्याs-,मन्याs ज्योतिषी.अपणा जजमानों कि टिपड़ी-कुंडळी बणांदा,द्यखदा,बंचदा,बुड्या ह्वैगीं,कपाळ फूली गे.दूर-दूर बिटि लोग टिपड़ी मिलाणो आंदा छाया.दूर-दराज मा पंडजी कि खूब हाम छै.
      ऊंकु अपणु अदर्मंजू नौनु ज्वान ह्वैगे छौ.वैका बान कतगे जगों बि बिटि टीप मंगवे दीं.खूब देखि-भाळी कै मिलान बि करे.कखि टीप नि मिली,त कखि नौनि कळसिणि ह्वैगे,कखि नौनि कद मा छवटि त कखि मोटि.कखि नौनि ठीक पण मवासी समझ मा नि ऐ. दिन इनी सरकणा रैं अर पंडजी खांदी-पींदी कुटुमदारी का चक्कर मा रैगीं.आख़िरकार एक नौनि पसंद ऐगे.टीप मिलान करेगे.२४ गुण एकदम फिट मिलि गीं.नौनि द्यखन-दर्शन भलि.मवासी बि ठीक.वींकू बुबा दिल्ली मा सरकारी नौकरी मा छौ.पंडजीन नौनि का बुबा तै खबर भेजि कि टीप मिली गे.एकदम ठीक मिलान हुयूं.घर-गृहस्थी,बाल-बच्चा,सुख-शांति,धन-संपदा सब कुछ ठीक च जोग पर.दुयूं कि जोड़ी एकदम बढ़िया च.
         दिन बार देखिकै पंडजी अपणा बामण दगड़ मा द्वी-चार गौं का भै-बन्दों तै लिजैकि गैनी अर नौनि तै पिठे लगैकी ऐगीं..सपैट देखिकै ब्योकु दिन-बार बि ह्वैगे.तीन मैना बाद खूब धूम-धाम से लगन पर ब्यो बि ह्वैगे.
        द्वी-चार मैना त नै-नै ब्योली ठीक रहे.पण हर्बी वींका पुटगा मा डाऊ शुरू ह्वैगे.वींकू जवैं दिल्ली मा एक प्राईवेट कंपनी मा काम करदु छौ.वा दिल्ली अपण जवैं का दगड़ चलि गे.तीन साल तक वख ही रहे.कबी रूडी मा द्वी-चार दिनों का वास्त ही आंदी छै घार.गौं मा वींकी जिठाण भारी चालाक अर चलपटा छै.अफु त सुद्दी रैंदी छै घुमणी नेतागिरी मा अर वींतै काम-काज मा लगे दीन्दी छै.ये वजह से वा बि तब्यत खराब कु बहाना बणेकि सरपट दिल्ली चलि जांदी छै.
         तीन-चार साल मा बि ऐथर कुछ हूण-खाणे आस नि बणि.सासु-ससुरजी कु रैबार गै कि भादौ मैना भूत पूजण घार ऐजै. भादौ मा द्वीई घार ऐगीं.जवैं एक हफ्ता कि छुट्टी लेकि यूं छौ.हफ्ता बाद द्वी फिर वापिस दिल्ली चलिगीं.एकदा भूत पूजिकी कुछ परचू नि मिली त.फिर चैत का मैना दुबारा सोचि.कबी कै पुछेरा मा गैनी त कबी कैमा.क्वीई कुछ त क्वी ई कुछ,अपणा-अपणा मुखे बात.एकन बोलि कि  नजर लगीं भारी.हैंकु ब्वल्द कि हन्त्या लगीं.क्वी ब्वल्द कि फिटकार च.एक पुछ्यsरन बोलि कि परी अर शैतान द्वीई  हरद्वार दगडी पूजण पड़ल़ा.आखिरकार ऊ बि सब कार. नवरात्र्यों मा नौ दिन कु पाठ बि करेगे.अबरी दा नौनु-ब्वारी द्वीई घर मा ही रैगीं.प्राईवेट नौकरी छुटिगे.पंडजीन बोलि कि बृति-बाड़ी समाळ अर दगड़ मा कुछ हौरि काम-धंधा बि द्यख्ला.
       कुछ मैना बाद बि जब फिर कुछ आस नि  ह्वै त वींका ब्वेन रैबार देकी वींतै  फिर दिल्ली बुलै दे.दिल्ली मा बिन काम-काज कि वा द्वी मैना मा ही खूब मोटी सि ह्वैगे.जब तीसर मैना घार ऐ त गौं कि जनन्यों मा खुसर-फुसर.ऊ न समझी कि अब त जरूर कुछ उम्मीद च. एक दिन पंदेरा मा कुछ ब्यटुलोंन पूछी दे.पण वींन ना बोलि दे.दिन इनी कटिणा रहीं.ब्यो हुयाँ सात साल ह्वैगीं पण मूसू बि नि जलमु.एकदा द्वी मैना कुछ आस ह्वै पण फिर निराश ह्वैगे.लोग अपण-आपस मा छवीं-बत लगें कि पंडजी दुन्यकि टिपड़ी मिलन्दीन अर अपणा नौना कि टीप कनि मिलै.
     ह्यूंद मा एकदा वा फिर दिल्ली चलिगे अपणा ब्वे-बाबु का दगड़.वींकी ब्वेन वींतै एक अस्पताळ मा चेकअप करे.लेडी डॉक्टरन सब जांच का बाद बोलि कि हसबैंड तै बि चेकअप का वास्त बुलाओ.वींन फोन कैरि कै वै तै दिल्ली बुलै दे.द्वीयों कु चेकअप का बाद इलाज शुरू ह्वैगे.तीन मैना तक इलाज का बाद द्वीई घार ऐगीं.गौं का बेटुलों मा अब खुसुर-फुसुर हुईं बल कि ऐथर कुछ हूण-खाणे आस ह्वैगे. 

         कथाकार- डॉ नरेन्द्र गौनियाल ..सर्वाधिकार सुरक्षित...narendragauniyal@gmail.com

No comments:

Post a Comment

आपका बहुत बहुत धन्यवाद
Thanks for your comments