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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Sunday, July 15, 2012

उखैक फिकर- एक गढ़वाली कविता

कवि - डी. डी. सुंदरियाल
इन त नी च कि
वूं थे वखे फिकर नी च

नेतओं कि फिकर च
कै गोऊँ कथ्गा बामण
कथ्गा जजमान
कति भोट म्यारा कति भोट  त्यारा

चुनओ जित्णइ फिकर
भाषण पर भाषण
ससतू करी द्यूंला राशण
अंधेरा रौलों, कूणा-कुमचेर
बिजली का खम्बा-तार पोंछये दिउंला
(उज्यले गारंटी हमारी नी च )

जीप घुमइकी, धुलु उड़े कि
सट्गि गईं डेरादून( लखनों) दिल्ली
पाँच साल माँ एक सवाल पुछी
वो भी बंगालै जूट इंडस्ट्री बारा
लाटु गम्फू काका न पूछि
“ब्यटा, गढ़वाला नक्शा म कखम च बंगाल”
अरे काका के कु गढ़वाल , के कु बंगाल,
नेताजी का ह्वै गिनी पूरा पाँच साल
ये गवैइ कि रीत ही ई च
इन त नी च कि
वूं थे वखे फिकर नी च
Copyright@ D.D Sundariyal, Chandigarh

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