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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Wednesday, June 13, 2012

गडवाळि कवि अर स्वांग लिख्वार डा. नरेंद्र गौनियाल जीs दगड भीष्म कुकरेतीs छ्वीं

गडवाळि कवि अर स्वांग लिख्वार डा. नरेंद्र गौनियाल जीs दगड भीष्म कुकरेतीs छ्वीं
भीष्म कुकरेती - आप साहित्यौ दुनिया मा कनै ऐन?
डा. नरेंद्र गौनियाल-- जनु कि ब्वले जान्द ''बियोगी होगा पहला कवि '' मेरी पैली कविता हमारो एक प्यारो भोटू कि अप्रत्याशित मौत पर लिखे गे. जु मिन सिर्फ १३ साल कि उम्र मा लिखी छै.ख़ुशी अर ग़म द्वी स्थिति इनि छन जैम मन्खी भारी भावुक ह्वै जान्द अर फिर अपणो मन कि बात लिखित रूप मा ले आन्द.गीत या कविता मान का भाव का दगड़ ज्यादा सहज होना का कारण साहित्य लेखन मा सबसे पैली गीत, कविता कि प्रवृति हूंद.अपणा मन का भाव सहज रूप मा गीत,कविता का रूप मा प्रकट ह्वै जन्दीन.
भी.कु- वा क्या मनोविज्ञान छौ कि आप साहित्यौ तरफ ढळकेन ?
न.गौ. -साहित्य लेखन खुद मा ही परिस्थितिजन्य एक मनोवैज्ञानिक प्रभाव अर परिणाम छ,जै तै व्यक्ति कि सोच,बौद्धिक क्षमता,प्रवृति,देशकाल परिस्थिति,निकट वातावरण,सुख-दुःख,आश्चर्य,आक्रोश,भय आदि प्रभावित करदीं.म्यार दगड बि ए तरह कि परिस्थिति समय-समय पर घटनै अर मनोभाव समय-समय पर पैदा हुने कारण साहित्य लेखन कि प्रवृति ह्वै.मन कि बात ब्वलन या ल्यखन से एक तृप्ति कु भाव पैदा हूंद.साहित्य लेखन से एक विशिष्टता कु भाव बि मन मा पैदा हूंद ,किलै कि हर क्वी मन्खी साहित्य नि ल्य्ख्दू,कविता नि करदू,गीत नि रच्दू.प्राचीनकाल से ही साहित्यकारों कु समाज मा एक बिशेष स्थान रहे.साहित्य लेखन से मान-सम्मान कि वृद्धि ,एक अलग पछ्याण मन्खी कि हूंद.
भी.कु. आपौ साहित्य मा आणो पैथर आपौ बाळोपनs कथगा हाथ च ?
न.गौ. - साहित्य लेखन मा बालपन कि महत्वपूर्ण भूमिका हूंद.दरअसल साहित्यकार अर वैको साहित्य कि आधारशिला त बालपन मा ही पड़ी जान्द.भौत काम लोग होला जु कि खूब पढ़ी-लिखी कि बाद मा परिपक्व होणा का बाद ही साहित्य ल्य्ख्नो शुरू कारला.साहित्य अर विशेषकर गीत-कविता जबरदस्ती या सोची-सोची कै नि लिखे जै सकेंदी.वो त जब आलि त समझो अफ्वी ऐ जाली.घचोरी-घचोरी कै नि औंदी.
भी.कु- बाळपन मा क्या वातवरण छौ जु सै त च आप तै साहित्य मा लै ?
न.गौ. -बालपन मा पहाड़ कु वातावरण,यख कु समाज,समस्या,प्रकृति से निकटता,यख कि परिपूर्णता अर यख का अभाव ए तरह का विरोधाभास सब्बि कुछ कुछ ना कुछ ल्यखणा वास्त प्रेरित करदन.
भी.कु. कुछ घटना जु आप तै लगद की य़ी आप तै साहित्य मा लैन !
न.गौ. - जनु कि मिन बोली छौ कि अपणा एक कुक्कर कि अचानचक मौत से दुखी ह्वै कि मिन पैलू गीत-कविता लेखी छौ.ए का साथ-साथ बचपन मा गौमा रामलीला,खुदेड गीत,थड्या-चौफुला ,रेडियो मा गीत,किताबों मा कविता पाठ ,रामायण,महाभारत कि कथा,गौं मा काकी-बोडी ,दादी-नानी कि परी,रागस,भूत-पिचास,देवी-द्य्ब्तों कि कथा बि प्रभावित करण वळी रैनी.
भी.कु. - क्या दरजा पांच तलक s किताबुं हथ बि च ?
न.गौ. --दर्जा पांच तक कि कितब्यों एक वातावरण तैयार करे.विशेषकर कविताओं कि भूमिका महत्वपूर्ण रहे.छंद बद्ध कविताओं तै लय बद्ध ,मदमस्त ह्वैकी गाण से कविता का तरफ झुकाव ह्वै.
भी.कु. दर्जा छै अर दर्जा बारा तलक की शिक्षा, स्कूल, कौलेज का वातावरण को आपौ साहित्य पर क्या प्रभाव च ?
न.गौ-- -दर्जा ६ से १२ अर वैका बाद कॉलेज शिक्षा क्रमशः साहित्य लेखनमा मददगार रहे.जनि-जनि ल्यखणो पढ्नु बढ्दू गै उनी-उनी साहित्यिक प्रवृति बि बढ्दी गै. विद्यार्थी जीवन मा मिन कविता शुरू करी याली छै.स्कूल पत्रिकाओं मा बि कविता-लेख शुरू ह्वै गे छया
भी.कु.- ये बगत आपन शिक्षा से भैराक कु कु पत्रिका, समाचार किताब पढीन जु आपक साहित्य मा काम ऐन ?
न.गौ-- -स्कूल-कॉलेज मा हिंदी साहित्य कि किताब्यों का साथ-साथ बाजार मा उपलब्ध तत्कालीन पत्र-पत्रिकाओं कु बि योगदान रहे.कादम्बिनी मेरी तब कि फेब्रेट छै.यंका दगड़ी दैनिक अख़बारों का साहित्यिक परिशिष्ट बि द्य्ख्दू छौ. ९- रामायण,रामचरितमानस,विनय पत्रिका,सूर सागर,कबीर-रहीम का दोहा,आधुनिक युग मा निराला,मुक्तिबोध ,सुमित्रानंदन पंत,आदि कविताओं कि रचना विशेष रूप से भली लगीं.
भी.कु- बाळापन से लेकी अर आपकी पैलि रचना छपण तक कौं कौं साहित्यकारुं रचना आप तै प्रभावित करदी गेन? आप तै साहित्यकार बणान मा शिक्षकों कथगा मिळवाग च ?
न. गौ. वरिष्ठ साहित्यकार श्री विष्णु दत्त जुयाल जी हमारी स्कूल मा तब शिक्षक छया.उंकी साहित्य साधना,रचनाधर्मिता से बि प्रेरणा मिली.
भी.कु. आपक न्याड़ ध्वार, परिवार,का कुकु लोग छन जौंक आप तै परोक्ष अर अपरोक्ष रूप मा आप तै साहित्यकार बणान मा हाथ च ?
न.गौ- - गुरुकुल आयुर्वेद कॉलेज मा कॉलेज पत्रिका मा कविता छपिना का बाद गुरुजनों अर छात्र-दग्द्यों न मेरी प्रशंसा करी अर साहित्य लेखन तै ईथर बढ़ोना कि सलाह दे ..१२-.मेरो एक दगडया डॉ अशोक रस्तोगी तै मेरी हिंदी कि कविता भौत अच्छी लगदी छै.कॉलेज टाइम कि मेरी कविताओं कु अशोक जी न अब्बी तक संग्रह कर्यूं.
भी.कु-ख़ास दगड्यों क्या हाथ च ?कौं साहित्यकारून /सम्पादकु न व्यक्तिगत रूप से आप तै उकसाई की आप साहित्य मा आओ ?साहित्य मा आणों परांत कु कु लोग छन जौन आपौ साहित्य तै निखारण मा मदद दे ?
न.गौ- - स्कूल टाइम मा कत्गे पत्र-पत्रिकाओं मा ल्याख्नो शुरू करे.वैका बाद धाद से जुडी गयूं.वैका दगड़ी चिठ्ठी-पत्री,हिलांस,स्वास्थ्य सन्देश,नैनी जन दर्पण,गढ़ ऐना,हिमाचल टाईम्स,हिमालय टाईम्स,नैनीताल समाचार,सहित कई पत्र पत्रिकाओं मा कविता लेख छपिनी. हिंदी का बाद गढ़वाली मा ल्य्ख्ने प्रेरणा मुख्य रूप से भाई लोकेश नवानी जी से मिली.पैली मि हिंदी मा जड़ा,गढ़वाली मा काम ल्य्ख्दु छौ.मेरो गढ़वाली साहित्य कि तरफ झुकाव नवानी जी कि ही देन छ.मेरी गढ़वाली कविताओं तै बेहतर रूप-स्वरूप देना माबी वूंको बड़ो योगदान छ. मेरो पैलो गढ़वाली कविता संग्रह ''धीत ''तै अस्तित्व मा ल्याण मा बि उंकी महत्वपूर्ण भूमिका छ.यंका अतिरिक्त अपणा दगड्या महेंद्र ध्यानी,देवेन्द्र जोशी,दर्शन सिंह बिष्ट,निरंजन सुयाल,मदन दुक्लान,बीना कंडारी,बीना देव्शाली, वीरेन्द्र पंवार, गणेश खुकसाल गणी, नरेंद्र सिंह नेगी,आदि कु बि आभारी छौं जौंका दगड कविता यात्रा मा कई सुखद साहित्यिक अनुभूति ह्वै.यांका साथ-साथ आकाशवाणी लखनऊ,, आकाशवाणी नजीबाबाद , भाई सुभास थलेडी,भाई विभूति भूषन भट्ट,विनय ध्यानी,आदि को बि आभार छ ,जौन गढ़वाली कविता को विकास मा अपनी भूमिका अदा करे.एका अतिरिक्त आज का समय मा गढ़वाली साहित्य तै नेट पर उपलब्ध करना मा भीष्म कुकरेती जी ,मेहता जी सहित मेरा पहाड़ फोरम,पहाड़ी फोरम,ई मैगजीन,आदि से जुड़याँ सब्बि दगड्यों कि महत्वपूर्ण भूमिका छ.
Copyright@ Bhishma Kukreti 14/6/2012
s = आधी अ

2 comments:

  1. मैं अपनी प्रतिक्रिया गढ़वाली में नहीं लिख पा रहा हूँ इसके लिए माफ़ कीजियेगा . आपकी पत्रिका में श्री (डॉ) नरेंद्र शर्मा गौनियाल जी का साक्षात्कार पढ़कर सुखानुभूति हुई. आज वे गढ़वाली और हिंदी के सशक्त हस्ताक्षर हैं और उनका यह साक्षात्कार उनकी कवि-यात्रा की याद ताज़ा करता है. मुझे याद है की साल १९९२ या १९९३ का होगा, तब मै आकाशवाणी लखनऊ में उत्तरायण कार्यक्रम का प्रभारी था, मेरे साथ दो अनुभवी सहयोगी स्व.जीत जरधारी और श्री वंशीधर पाठक थे. जैसा की मालूम है, यह कार्यक्रम उत्तराखंड के पर्वतीय निवासियों के लिए प्रसारित किया जाता है और पर्वतीय क्षेत्र में आज भी लोकप्रिय है. उस वक़्त हमने गढ़वाली और कुमायुनी लोकभाषा कवि-सम्मलेन आमंत्रित श्रोताओं के समक्ष आयोजन किया था और मेरी कोशिश थी की बिलकुल नए लोगों को इसमे शामिल किया जाय. इसी खोज के तहत श्री नरेद्र गौनियाल जी का नाम आया और उन्हें आमंत्रित किया गया. संभवतः वे पहली बार आकाशवाणी के कार्यक्रम में गए होंगे और वह भी एक बड़े कार्यक्रम में. उनकी कवितायेँ बहुत सराही गयी क्योंकि छोटी और सपाट थी तथा हास्य पुट के साथ व्यवस्था पर भी कचोट थी. उसके बाद कई बार नरेन्द्र गौनियाल जी कार्यक्रमों में शामिल हुए. आकाशवाणी नजीबाबाद में उन्हें बुलाया था तो वे रामनगर से स्कूटर चलाकर पंहुच गए. ऐसा जीवट कवि........ उनसे फेसबुक और जीमेल के द्वारा अब बराबर संपर्क रहता है और उनकी गतिविधियों की जानकारी प्राप्त होती रहती तो अच्छा लगता है. मेरी शुभकामनाएं ....

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  2. thaledi ji namaskar.prtikriya-sandesh ka wast dhanybad.apan barshon paileki akashvani lucknow ki yad taja kari de.amantrit shrotaon ka beech sahkarita bhawan ka sabhagar ma gadhwali-kumayuni goshthi bhaut safal rahe.bhai narendra singh negi,heera singh ranaji,lokesh nawaniji,mi ar madan duklan ji aadi ek darjan ka kareeb kaviyon bhagidari kari chhai.khoob anand ai chhau kaviyon tai bi ar shrotaon tai bi.baad ma haman kumayun parishad ka karyalay ma bi ek goshthi kari chhai.apni bhasha-sanskriti ka sanrakshan,prchar.prsar ma yogda ka wast akshvani ko mahatwpoorn yogdan rahe.meri 100 se jada rachna ini chhan ju min akashvani ka amantran par kavi goshthi ka wast racheen.aap sabhi logon ka sneh,sahyog ka wast punah aabhar.

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आपका बहुत बहुत धन्यवाद
Thanks for your comments