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Sunday, May 20, 2012

Poems on subject of World war विश्व युद्ध अर कविता : अनुवाद एवम आलेख : गीतेश सिंह नेगी

Translation of Poems on  subject of  World  war 
Translation By Geetesh singh Negi
Notes on Translationof a Poem based on world war ; Translation of a Poem based on world war by an Asian translator; Translation of a Poem based on  World  war by a southAsian translator;  Translation of a Poembased on  World  war by an SAARC countries translator; Translation of aPoem based on  World  war by an Indian subcontinent  translator;  Translation of a Poem based on  World  warby an Indian  translator; Translation of aPoem based on  World  war by a North Indian  translator; Translation of a Poem based on  World  war by a Himalayan  translator;Translation of a Poem based on  World  war by a Mid-Himalayan  translator; Translation of a Poem based on World  war by an Uttarakhandi  translator;Translation of a Poem based on  World  war by a Kumauni  translator; Translation of a Poem based on World  war by a Garhwali  translator

युद्ध विभीषिका पर कविताएँ; युद्ध विभीषिका पर कविताओं का एशियाई अनुवादक का अनुवाद ; युद्ध विभीषिका पर कविताओं का दक्षिण  एशियाई अनुवादक का अनुवाद ;युद्ध विभीषिका पर कविताओं का भारतीय  अनुवादक का अनुवाद ;युद्ध विभीषिका पर कविताओं का उत्तर भारतीय  अनुवादक का अनुवाद ;युद्ध विभीषिका पर कविताओं का हिमालयी  अनुवादक का अनुवाद ;युद्ध विभीषिका पर कविताओं का मध्य हिमालयी  अनुवादक का अनुवाद ;युद्ध विभीषिका पर कविताओं का गढ़वाली  अनुवादक का अनुवाद ;
विश्व जुद्ध  अर कविता
कब्भी यु जरूरी हुन्द
ता कब्भी नि भी हुन्द
कब्भी यु हमरी भारी  रक्षा करद
ता  कभी कम
कब्भी यु हुन्द न्यौ  अर सच का बाना
कभी हुन्द पैदा झूठ से
ता कब्बी निकज्जू  नेतौं  की घमंडी भूख से


लडै कु कारण चाहे  कुछ भी हो ,सच -झूठ , न्यौ - इन्साफ ,अपडा लोगौं अपडा   मुल्क अप्डी कौम की रक्षा , लोभ , या फिर दुनिया मा अप्थेय बडू अर ताकतवर साबित करणा की राजनैतिक  जिद  या फिर कूट नीतिक चाल |    लडै मा शामिल चाहे कुई  भी हो अमीर गरीब ,छोट्टू बडू ,लाचार मजबूर ,मन्न से  या फिर बेमन्न से ,धरम का नौ फर या इंसानियत का नौ से - लडै  का परिणाम ता आखिर सब खुण  एक जन्नू ही हुन्द |
जब लडै लग जान्द ता दुनिया कु काम काज करणा कु तरीका अर मकसद अर सोच सब  बदल जन्दी ,हल्या हैल  छोड़ दिन्द अर बन्दुक पकड़ दिन्द ,स्कूलया स्कूल छोडिक फौजी वर्दी मा आ जन्दी ,कवि किसा  मा कलम अर कांधी मा  बन्दुक लेकी  चलणा  कु मजबूर  व्हेय जान्द या फिर इनंह  समझा की भारी मन्न से ही सै पर  वी भी एक हिस्सा बण जांद इन्ह लडै  कु | जू कवि ब्याली  तक बन्नी  बन्नी का फुलौं मा अप्डी सुवा कु रंग रूप खुज्यांदु  छाई , जू चखुलीयूँ ,गाड गद्नियूं ,दीवार  ,कुलैं अर किस्म किस्म की  डालियुं मा अप्डी सुवा की चलक - बलक  वींकी  मूल मूल हैन्स्दी मुखडी  देख्दु छाई ,जू गदिन्यौं  का पाणी सी समोदर मा समाणा की  आस लगैक  अप्डी कलम चलन्दु छाई ,अपडी जिकुड़ी का प्रेम भाव इन् खत्दु छाई जन्न बस्गाल मा सरग पाणी बरखांद ,जन्न ह्युंद मा सुबेर घाम हिम्वली डांडीयूँ  मा फैलैंद पर लडै मा   वू अब मजबूर व्हेय जान्द दुःख अर दर्द का गीत लिख्णु कु ,उन् ता कवि कु असल काम ये बगत मा अपडा मुल्क मा  वीर रस की गंगा बगाण हुन्द पर जब सरया दुनिया आगऽल हलैणी व्ह़ा  अर एक मनखी दुस्सर मनखी की लोई पीणा कु तयार बैठ्युं व्ह़ा ,चौदिश लोई मा भोरयां हथ - मुंड -खुट्टा पोडयाँ व्ह़ा ता वेकि कलम मा बगता का दगड  लडै का तजुर्बा का हिसाब से वीर रस की स्याई  सुखदा जान्द अर  कल्कालू  रस का
गदना खतैण  बैठ जन्दी अब कवि थेय फुलौं की मौल्यार  अर बाश का बदल बारूदऽक  गंद आन्द ,वू  लाल -पिंगला रंग देखि की सुवा की मुखडी या बुरंशी या फ्योंली का फूल नी सम्लांदु ,इन् मा वे थेय खून से लतपत ज्वानौं की मुखडी या फिर परेशान , डरयाँ मनख्यूं की पिंगली मुखडी ही दिखेंद | किलै कि बूलै जान्द की कवि अर लिख्वार समाज कु दर्पण हुन्दी इलै एक कवि अर लिख्वार कि या नैतिक जवाबदरी  हुन्द कि वू  लडै कु खरु  सच लडै कि असल पीड़ा अर अप्डी  खैर थेय सरया दुनिया मा मिसाव ताकि वेक चराह दुनिया बी  समझ  साक कि लडै से कब्बी मनख्यात  थेय फैदा नी हुंदू |

इतिहास साक्षी च कि जब जब दुनिया मा लडै लग्ग , बौंल फ़ैल ,अत्याचार  व्हाई  ,अपराध व्हाई कलम का यूँ सिपैयुंऽल सच दुनिया का समिणी उन्ही धैर द्याई  जन्न कि वू छाई |
दुनिया मा मची ये बगता कि   सबसे खतरनाक लडैऽम भटेय  एक  - विश्व युद्ध  ज्यां से सरया दुनिया कु  नुकसान त  व्हाई च पर सबसे ज्यादा छैल छट्टी मनख्यात कि लग्गीं | विश्व युद्ध कि इन्ह लडैऽमा बड़ा बड़ा कवियुं अर लिख्वारौं हिस्सा ल्याई , पर अच्छी बात या चा कि यूँ लिख्वारौंऽल सब्बी दुःख दर्द सैं ,कन्धा मा बन्दुक धैरिक भी युन्ल कलम नी छ्वाडि अर दुनिया मा लडै  कु असल मुंड मुख दिखै |यूँ कवियुं मा रुडयार्ड किपलिंग ,वर्ड्स वर्थ ,वेरा ब्रिटेन ,थोमस हार्डी ,एडवर्ड थोमस ,सिगफ्राईड सैसून ,रोबेर्ट निकोल्स ,मुरिएल स्टुवर्ट ,चार्ल्स सोरले ,हेनरी न्युबोल्ट ,ऐलन सीगर ,कैथरीन ,इवोर गुरने ,विल्फ्रेड ओवेन ,ओवेन सीमैन ,रोबेर्ट ग्रवेस अर झणी कत्गा ज्ञात अज्ञात नौ छीं ,झणी कत्गा कलम लडै मा सुख ग्ये होली अर झणी कत्गौं  कि कलम लडै का मैदान मा कक्खी  पत्डेय ग्ये होली  |

विश्व युद्ध का तजुर्बौं थेय  कतगे कवियौंऽल कबिता संग्रे का रूप मा तमाम  दुनिया  तक पहुँचाई | यूँ मा सबसे पहलु अर खास नौ विल्फ्रेड ओवेन , सिगफ्राईड सैसून ,एडवर्ड थोमस अर वोर्ड्स वर्थ  कु आन्द |

विश्व युद्धऽक बाबत  छप्यां कुछ खास कबिता  संग्रे : वोर्ड्स वर्थ बुक आफ फर्स्ट वर्ल्ड वार पोएट्री (मार्केस  क्लाफाम सम्पादित ) , विल्फ्रेड ओवेन्सऽक  द  पोयम्स ऑफ़ विल्फ्रेड ओवेन्स  ,रुपर्ट  हार्ट -डेविस संग्रहित सिगफ्राईड सैसूनऽक   ११३  कबितौं कु संग्रे  द वार पोएम्स  ,जीन मूर्क्रोफ्त विल्सन सम्पादित  सिगफ्राईड सैसून : मेकिंग  आफ ए वार पोएट भाग १, पैट्रिक  कैम्पबेल सम्पादित : सिगफ्राईड सैसून : ए स्टडी  आफ द वार पोएट्री ,अर एडवर्ड थोमस  कि कबितौं का द्वी संग्रे ख़ास मनै  जन्दी येका अलावा जोंन स्टालवोर्थी सम्पादित वार पोयम्स आफ विल्फ्रेड ओवेन्स ,  डेविड  रोबेर्ट सम्पादित आउट इन द डार्क - पोएट्री ऑफ़ फर्स्ट वर्ल्ड वार   जैंमा विल्फ्रेड ओवेन  कि २० कविता अर सैसून कि २७ कबिता संग्रहित छीं , माइंड्स ऐट वार : पोएट्री एंड एक्सपिरिएंस ऑफ़ द  फर्स्ट वर्ल्ड वार   जैम डेविड  रोबेर्ट सम्पादित ८० कवियौं कि २५० कबिताऔं कु संग्रे चा ,विवियन नोएयस सम्पादित वोइसिस आफ साईलेंस : द अल्टरनेटिव  बुक ऑफ़ फर्स्ट वर्ल्ड वार पोएट्री ,क्रिस्टोफर  मार्टिन संपादित  वार  पोयम्स कुछ और संग्रे छीं |
                                     विश्व युद्धऽक कवियौं कि कविता
                         सिगफ्राईड सैसून कि कबिता (गढ़वाली अनुवाद ) : १
 

 सिगफ्राईड सैसून  कु जलंम ८ सितम्बर १८८६ मा केंट मा व्हाई छाई ,उंल  कैम्ब्रिजऽक  क्लारे कॉलेज मा दाखिला ल्याई पर अधा मा ही कॉलेज छोड़ द्याई  वर्ल्ड वार का बगत वू  कैवेलेरी मा भर्ती व्हेय ग्याई अर १९१५ मा अफसर बणिक फ़्रांसऽक पछिमी सीमा मा भेज्ये ग्याई ,१९१६ मा उन्थेय सैन्य चक्र   भी मिल | फ्रांस  मा वेकि भेंट विल्फ्रेड ओवेन अर रोबेर्ट ग्रवेस जन्न  कवियौं दगड व्हाई |१९१७ मा लडै मा घैल हूंण  से वे थेय घार वापिस भेज्ये ग्याई | वू ब्रिटेन अर ताकतवर मुल्कौं कि लडै थेय लम्बू खिच्णा कि कूटनीति से इत्गा परेशान छाई कि वेल एक खिलाफत मा एक घोषणापत्र छपा द्याई छाई | युद्ध का प्रति वेकि नफरात वेकि कवितौं मा साफ़ झलकैंद वेल अफसरों  कि लापरवाही अर मनख्यात विरोधी भावना का खिलाफ अप्डी कबितौं मा व्यंग  रूपी हथियार से भारी भारी चोट करीं अर जब इ कबिता द ओल्ड हंट्स मैंन (१९१७) अर काउंटर अटैक (१९१८ )    मा  छपीं ता भारी हंगामा व्हेय पर वेल विद्रोल  का बाद भी ओवेन अर रोबेर्ट ग्रवेस जन्न मनख्यात का पक्ष मा वैचारिक लडै नी  छोड़ी  अर  मेमोइर्स आफ फोक्स हंटिंग मैंन (१९२८ ) ,ममोइर्स ऑफ़ इन्फैंट्री ऑफिसर  (१९३० ) , शेरस्टनस प्रोगरेस (१९३६ ) ,द ओल्ड सेंचुरी (१९३८ ) ,द वेअल्ड ऑफ़ यूथ (१९४२ ) अर सिगफ्राईडस जर्नी (१९४५ )   लेखिक अप्डू तजुर्बा अर विरोध दुनिया का समिण धैर द्याई  |
मन्खियात का बाना संघर्ष करद करद कलम कु यु सिपै १९६७ मा सदनी खुण चिर निंद्रा मा ख्वे ग्याई अर रै ग्याई ता बस वेकु विश्व युद्धऽक तजुर्बा अर मन्खियात का पक्ष मा आखिर सांस तक  कै भी हालत मा लडै लड्नैक वेकि प्रेरणा |



 
How to Die

Dark clouds are smouldering into red
While down the craters morning burns
The dying soldiers shifts his head
To watch the glory that returns ;

He lifts his fingers towards the skies
Where holy brightness breaks in flame ;
Radiance reflected in his eyes ,

And on his lips whispered name

You'd think , to hear some people talk
That lads go west with sobs and curses ,

And sullen faces as chalk
Hankering for wreaths and tombs and hearses .

But they 've been  taught the way to do it
Like christian soldiers ; not with haste
And shuddering groans ; but passing through it
With due regard for decent taste  

( Siegfried Sassoon)
 " कन्न कैऽ मोरंण  "

सुलगणा छीं काला बादल लल्नगा व्हेकि
 अर फुकेणि च   सुबेर  ज्वालामुखी का मूड
कटा दिन्द  अप्डू मुंड घैऽल  सिपै
देखणा  कु शान जू आन्द बोडिक
उठैकी अप्डी अंगुली  असमान जन्हे
पैदा हुन्द जक्ख पवित्र लौं  मा   चमक  
अर चमकद आँखौं मा
अर वेक उठ्डियौं मा खुप्स्यानद  एक नौऽ

तुम सोचिला  ,सुणणा  व्हेला  कुछ लोगों थेय  बच्यांद

क़ि जन्दी  पछिम  जन्हे  बिल्खदा अर फिटगरयाँ  ज्वाँन
अर उदास  खढैऽय सी मुखडी   उंकी 

 तयार  फूल-मालौं ,कब्रौं अर ताबूत सरण वाली गाडीयूँ  खुण
क़िलैय क़ि   उन्थेय सिखये ग्याई ,इन्ही करणु
इसै सिपैयूँ का जन्न , जल्दबाजी मा ना
दगड झरझर कौम्पद ,  पर वे थेय पुरयाणु
शौक  से पुरु ध्यान लगैऽक


( How to Die कु गढ़वली अनुवाद  )

अनुवादक : गीतेश सिंह नेगी ,सर्वाधिकार सुरक्षित

 Translation of Poems on  subject of  World  war


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translator  continued ....
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