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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Tuesday, April 24, 2012

Hindi Poem by Dr Narendra Gauniyal

*********बेचारा *******
मै टहल रहा था
बस्ती से दूर
खेतों की तरफ
स्वछन्द
एकांत
टहलते-टहलते
बैठ गया एक पत्थर पर
विचारमग्न

कुछ चिड़ियाँ
चहक रही थी
शायद
आपस में पूछ रही थी
कौन ?
क्यों ?आया है !
साथ में क्या लाया है ?

एक चतुर चिड़िया
चह-चहाई
मानो कहती है -
देखते नहीं
थकाहारा है
लाता भी क्या
बेचारा है
दुनिया से दूर
यहाँ आया है
देखो ! कैसी कृशकाया है

बैठा है चुपचाप
कोई हरकत नहीं
मानो जीव नहीं
हो पत्थर के ऊपर
दूसरा पत्थर

चलो देखें
एक प्यारा सा
मधुर गाना गायें
मन बहलायें
जाने क्यों
यहाँ आया है
कुछ सोच में
डूबा सा लगता है
अरे !
यह क्यों उठ गया है

हमारा
गीत-संगीत
इसे भाया नहीं
अब तो
उठकर कहीं जा रहा है
चलो जाने दो
हमें देगा भी क्या
थका हारा है
बेचारा है .......
       डॉ नरेन्द्र गौनियाल 

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