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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Sunday, December 11, 2011

Great Personalities of Garhwal ( Malari era till date) Part 7-16 गढ़वाल की विभूतियाँ (मलारी युग से वर्तमान तक ) : भाग 7 -16

 गढवाळ का नामी गिरामी लोक (मलारी जुग बिटेन अब तलक ) : फडक - 7
                                                                 गढ़वाल की विभूतियाँ (मलारी युग से वर्तमान तक ) : भाग 7
                                  Great Personalities of Garhwal ( Malari era till date) Part 7
                                                                          भीष्म कुकरेती Bhishm kukreti
 
( ये लेख कु उद्देश्य नवाड़ी साख/छिंवाळी/न्यू जनरेशन तैं गढवाळी भाषा मां अपण ऊँ लोकुं तैं याद कराण जौंक कारण आज गढवाळ च , जौंक वजै से आज हम तैं घमंड च /गर्व च )
Dynasty of Jay Das जयदास अर वैका वंशज (190-350 AD)
जयदास अर वैका वंशंजूं राज छागळपुर मा ( लाखामंडल का नजीक ) छौ अर सी तौल़ा क ख़ास -ख़ास रज्जा छ्या .
१- जैदास ' नरपति'
२-गुहेश 'क्षिपति'
३- अचल 'अवनीपतीश '
५- छागलेशदास '
६-रुद्रेश दास ' न्रिपतेश'
७- अजेश्वर, छाग्लेश या छागलकंतु
यूँ रज्जा क राज मा लोकूं तैं शिखा दीणो भलो रिवाज थौ. इन लगद ये बगत लाखामंडल जिनां शैव धर्म को बोल बाला थौ अर राज परिवार मा उमा-महेश्वर की पूजा हुंदी छे.
(History of Early Garhwal, History of Early Kumaun )
........बकै फाड़ी - 8 मां.
.......To be Continued part 8 

                                                      गढवाळ का नामी गिरामी लोक (मलारी जुग बिटेन अब तलक ) : फडक -8
गढ़वाल की विभूतियाँ (मलारी युग से वर्तमान तक ) : भाग 8
Great Personalities of Garhwal ( Malari era till date) Part 8
भीष्म कुकरेती Bhishm kukreti
( ये लेख कु उद्देश्य नवाड़ी साख/छिंवाळी/न्यू जनरेशन तैं गढवाळी भाषा मां अपण ऊँ लोकुं तैं याद कराण जौंक कारण आज गढवाळ च , जौंक वजै से आज हम तैं घमंड च /गर्व च )
कर्त्रिपुर मा गुप्त राजाओं प्रान्तशासक
डा डबराल न बि किताब, कथों, पुराणा स्वांग (नाटक) अर शिलालेखुं बांचिक य़ी बोल बल उत्तराखंड पर गुप्त रज्जों राज राई अर उख इतिहास कु समौ या च
१- गढवाळी खशाधिपति अर ऊंका वंशज ( 350-380 AD)
२- गुप्त राजौं अधिकार (380 - 470AD)
३- विषयपति सर्वनाग (465-485 AD) : विषयपति सर्वनाग गुप्त राजाओं क कत्रीपुर मा मुख्त्यार थौ
४- नागवंशी नरेश (485- 576AD) : गोपेश्वर अर बाड़ाहाट क अभिलेखुं क हिसाब से जब गुप्त राजाओं तागत कम ह्व़े त नाग्वंश्युं न गुप्त राजाओं बिटेन उत्तराखंड कु राज हथिया
५- यदुवंशी : नाग्वंश्युं समौ पर यामुनाप्रदेश (पच्छमी उत्तराखंड ) मा यदुवंश्युं क राज थौ
.......To be continued part - 9
.......बकै फडक 9 मा बाँचो.....
Reference : Dr Shiv Prasad Dabral : Uttarakhand ka Itihas Part 3, (History of Uttarakhand)
(History of Early Garhwal, History of Early Kumaun
                                                 गढवाळ का नामी गिरामी लोक (मलारी जुग बिटेन अब तलक ) : फडक -9
गढ़वाल की विभूतियाँ (मलारी युग से वर्तमान तक ) : भाग 9
Great Personalities of Garhwal ( Malari era till date) Part 9
भीष्म कुकरेती (Bhishm Kukreti )
( ये लेख कु उद्देश्य नवाड़ी साख/छिंवाळी/न्यू जनरेशन तैं गढवाळी भाषा मां अपण ऊँ लोकुं तैं याद कराण जौंक कारण आज गढवाळ च , जौंक वजै से आज हम तैं घमंड च /गर्व च )
महाकवि कालिदास गढवाळी ही थौ
Great Poet Kalidas was Garhwali !!!!
उन त महाकवि कालिदास क जन्म स्थान कु बारा मां जण गरुं मा इकराय णी च फिर बि इन बुले जय सक्यांद बल कालिदास कु जन्म कविल्ठा मा होई ( 100 se 400 AD का बीच कु समौ )
भज्ञान ललिता प्रसाद नैथाणी , सदानंद जखमोला, डा शिवा नन्द नौटियाल अर भीष्म कुकरेती न वैज्ञानिक ढंग से सिद्ध करी बल कालिदास कु जन्म कविल्ठा (चमोली गढवाल ) ही छ . भीष्म कुकरेती न त नेपाली लिखवार कु
आधिकारिक लेख बल कालिदास कु जन्म नेपाल मा ह्व़े छौ कु तर्कशाश्त्र का पूरा सिद्धांत का बल पर सिद्ध करी बल कालिदास नेपाली ना गढवाळी थौ
कालिदास कु उत्तराखंड
कालिदास क साहित्य मा गढवाल/उत्तराखंड ही उत्तराखंड च
कुमारसंभव मा गढवाळ -कुमाऊं
कुमारसंभव कु पैलो सर्ग का चौड़ा श्लोकुं मा हिमालय कु बिरतांत च
पन्दरा श्लोक बिटेन गढ़वाल , भागीरथी, अलकनंदा (गंगा) जन बातुन बिरतांत च
तिसरू सर्ग मा गंधमाधन डांड, पाख पख्यड़ऊँ आदि कु बिरतांत च
छठों सर्ग मा हिमालय कु बिरतांत मनिख जन च
सातों सर्ग मा औसधिप्रस्थ, म्दाराच्ल पहाड़ अर कैलास कु बिरतांत च
मेघदूत मा गढवाळ
मेघदूत मा कुरुक्षेत्र बिटेन कनखळ औणो अर अग्वाड़ी हिमालय, अलकापुरी ( आजौ बसुधारा ) अलकनंदा अर कैलास कु बिरतांत च
अभिज्ञानशाकुंतलम स्वांग मा गढवाळ
पैलक अंक मा मा कणवाश्रम की ब्त्था छन . अर इख मा गंगा जी , मालनी पर आधारित घटना छन . दुसर अर तीसर अंक मा बि कण्वाश्रम की ब्त्था छन. . अगनि हेमकूट की घटना छन
विक्रमोवंशीयम मा गढवाळ
ये काव्य मा हेमकूट, कार्तिकेय आदि को विर्तांत च
 
 (History of Early Garhwal, History of Early Kumaun
बकै अग्वा ड़ी क फान्क्युं (फडक ) '... 10 मा बाँचो
to be continued in part 10........
                                                    गढवाळ का नामी गिरामी लोक (मलारी जुग बिटेन अब तलक ) : फडक -10
गढ़वाल की विभूतियाँ (मलारी युग से वर्तमान तक ) : भाग 9
(Great Personalities of Garhwal ( Malari era till date) Part -10
भीष्म कुकरेती (Bhishm Kukreti )
( ये लेख कु उद्देश्य नवाड़ी साख/छिंवाळी/न्यू जनरेशन तैं गढवाळी भाषा मां अपण ऊँ लोकुं तैं याद कराण जौंक कारण आज गढवाळ च , जौंक वजै से आज हम तैं घमंड च /गर्व च )
मौखरी राज ( 480-550 AD )
हूण रज्जा यशोबर्मन ( 530-540 AD) : इन लगद हूण आक्रमण से पैली अर पैथ्रां गढवाळ का कुछ या सबि हिस्सौं मा मौकहरी राज थौ . उन त मंदसौर स्तम्भ अधार पर जणगरा ब्थान्दन बल कुछ समौ तलक गढवाल़ो कुछ हिस्सों पर हूण वंशीय खासकर यशोबर्मन को राज बि राई
मौखरी नरेश इशानबर्मन : आदित्यसेन का अफसाड़ अभिलेक से पता चलद बल जय बगत हूण वंशीय राज हिमाचल तलक ह्व़े गे थौ वैबरी गढवाल को हिस्सा पर मौखरी नरेश इशानबर्मन को राज छयो अर वैन अर वैको राजकुमार सर्व बर्मन न हूणो तैं गढवाल मा नि घुसण दे थौ.
मौखरी नरेश सर्व बर्मन: सर्व बर्मन इशानबर्मन को लौड़ छयो अर वैन अपण बुबा राजा इशानबर्मन को दगड मिलीक हूणों तैं गढवाळ मा नि आणि दे. इशानबर्मन बड़ो तागतबर मनिख थौ
 
((History of Early Garhwal, History of Early Kumaun )
                                 गढवाळ का नामी गिरामी लोक (मलारी जुग बिटेन अब तलक ) : फडक -11
गढ़वाल की विभूतियाँ (मलारी युग से वर्तमान तक ) : भाग 11
Great Garhwali Personalities (Malari Era till Date): Part 11
भीष्म कुकरेती (Bhishm Kukreti )
( ये लेख कु उद्देश्य नवाड़ी साख/छिंवाळी/न्यू जनरेशन तैं गढवाळी भाषा मां अपण ऊँ लोकुं तैं याद कराण जौंक कारण आज गढवाळ च , जौंक वजै से आज हम तैं घमंड च /गर्व च )
कर्तारिपुर पुर का नागवंशी रज्जा
गुप्तकाल मा गुप्त रजौ क गढवाली प्रांताधिकारी विषयपति (465-485AD) क बारा मा कुछ उल्लेख एक ताम्रपत्र मा मिल्द
गोपेश्वर (चमोलू) अर बाड़ाहाट का त्रिशूल अभिलेखुं से पता चल्दु बल एक दें मौखरी बंश राज से पैलि नागवंशी राजाऊं राज बि राई
डा शिव प्रसाद डबराल को अन्थाज से युंको राज 485 AD शुरू ह्व़े होलू
नाग्वंशियुं का पांच राजों नाम त्रिशूल अभिलेख का अनुसार इन छन :
गोपेश्वर क त्रिशूल लेख:
१- स्कंदनाग : जु नाग्वंश्युं राज शुरू करण वाल माने जांद
२- विभुनाग
३- अन्शुनाग
४- गणपति नाग
बाड़ाहाट त्रिशूल लेख मा
5- गणेश्वर : गणेश्वर का बारा मा जादा पता नि चल्दु पण इथगा त छें च वो धार्मिक किस्मौ रज्जा थौ
६- गुह नाग : महाबलशाली थौ. वैका आँख बड़ा बड़ा छया, बिग्रैल छौ अर दानी छौ . जणगरु विद्वान् छौ त धार्मिक बि थौ. इन लगद कै दुश्मन राजा न गुह पर आक्रमण करी थौ पण गुह न वै राजा तैं हरै छौ
गणपति नाग : गणपति नाग को नाम सैत च गणेश्वर बि थौ.
गणेश्वर न बाड़ाहाट (उत्तरकाशी) मा एक भौत उच्चो शिव मंदिर बणे छयो
गणेश्वर कु नौन गुह न ए मंदिर का समणी २१ फूट उच्चो पितल़ो त्रिशूल थर्पी (स्थापना ) छौ : गोपेश्वर ( 15 foot ) अर बाड़ाहाट द्वी इ त्रिशूल कला क मामला मा एकजनी छन अर इन लगद बल यूँ त्रिशुलूं तैं एकी सल्ली (कलाकार) न गाड़ी / बणे होलू .
Reference : Dr Shiv Prasad Dabral , Uttarakhand ka Itihas - 3 (History of Garhwal Uttarakhand , )
(History of Early Garhwal, History of Early Kumaun )
अग्वाड़ी का लेख फडकी/भाग 12 मा बाँचो .....
To be Continued .... on part 12th
                                       गढवाळ का नामी गिरामी लोक (मलारी जुग बिटेन अब तलक ) : फडक -12
गढ़वाल की विभूतियाँ (मलारी युग से वर्तमान तक ) : भाग 12
Great Garhwali Personalities (Malari Era till Date): Part 12
भीष्म कुकरेती (Bhishm Kukreti )
( ये लेख कु उद्देश्य नवाड़ी साख/छिंवाळी/न्यू जनरेशन तैं गढवाळी भाषा मां अपण ऊँ लोकुं तैं याद कराण जौंक कारण आज गढवाळ च , जौंक वजै से आज हम तैं घमंड च /गर्व च )
सैंहपुर का यादव राजवंशी बारह राजा (600-800 AD का न्याड ध्वार )
लाखमंडल अभिलेख मा सैंहपुर का बारा राजाओं क बर्णन मिल्दो . सैंहपुर/ सिंहपुर कालसी से आठ मील दूर यमुना अर गिरिनदी क संगम पर यमुना क दें छ्वाड च अर लाखामंडल मा औन्दो .
राजकुमारी ईश्वरा : ईश्वरा सैंहपुर /सिंहपुर की राजकुमारी छे अर वा बाल विध्वा ह्वेका अपण मैत सैंहपुर मा रौंदी थै . अपण कजै क प्रशश्ति मा इख मंदिर बणे अर पितृकुल का बारा पितरूं प्रशश्ति लिखाई
१- राजर्षि सेनवर्मन : राजर्षि सेनवर्मन न ये यदु वंश की स्थापना सैंहपुर मा करी छे ( मूल पुरुष यदु माने जान्द )
२- नृपति आर्यवर्मन : नृपति आर्यवर्मन राजर्षि सेनवर्मन कु लौड़ छौ एक सदाचारी मनिख छौ
३- नृपति देव वर्मन : नृपति देव वर्मन नृपति आर्यवर्मन , कु नौनु छौ . डौर भौ से दूर अर हौरुं डौर भौ दूर करण मा श्रेष्ठ छौ , कुल के विजय का वास्ता प्रसिद्ध थौ
४- भूपाल प्रदीप वर्मन : प्रदीप वर्मन , देव वर्मन कु नौनु छौ . क्रोधी अर शत्रुमर्दन का बान प्रसिद्ध
५- भूपति इश्वर वर्मन : सिह्वर वर्मन प्रदीप वर्मन कु राजकुमार छौ . दानि छौ .
६ - राजा वृद्धि वर्मन : वृद्धि वर्मन क बुबा को इश्वर वर्मन थौ. सुखदाई राजा छौ
७ - राजसिंह सिंहवर्मन : राजसिंह सिंहवर्मन , वृद्धि वर्मन क लौड़ छौ . ये ही दानि, शौर्यमान राजा न सैंहपुर /सिंहपुर
८ - नृपति जल वर्मन : नृपति जल वर्मन , राजसिंह सिंहवर्मन को बेटा छौ . ताप दूरकर्ता छौ
९- महीपति यग्य वर्मन : नृपति जल वर्मन को बेटा क नाम महीपति यग्य वर्मन छौ
१० राजर्सी घंघल अचल वर्मन : राजर्सी अचल वर्मन , महीपति यग्य वर्मन को पुत्र थौ. सदाचारी
११- नृपतीश महाघंघल दिवाकर वर्मन : महाघंघल दिवाकर वर्मन राजर्सी अचल वर्मन कु लौड़ थौ . तेजस्वी
१२- नृपति पाल , रिपुघन्घल भाष्कर वर्मन :नृपति पाल भाष्कर वर्मन , महाघंघल दिवाकर वर्मन कणसो भुला थौ . शत्रु विजयी
डा डबराल को हिसाब से घंघल शब्द को अर्थ विजयी है (घंघोल शब्द से आई )
ये जुग मा शील सुभाव अर मोरन वा ळ की याद मा मंदिर बनौणो रिवाज छौ. शैव मत को प्रचार भौत छौ , खासकर शिव लिंग पूजै तैं जादा मान्यता छई . शिव पार्वती क ब्यौ की गाथा वै बगत प्रसिद्ध ह्व़े गे छे. कखी कखी बौध धर्म को प्रचार बि होंदु थौ .
Reference : Dr Shiv Prasad Dabral , Uttarakhand ka Itihas - 3 (History of Garhwal, Uttarakhand , )
(History of Early Garhwal, History of Early Kumaun )
...... बकै 13 वां खंड मा बाँचो
To be continued in 13th part ........
                                     गढवाळ का नामी गिरामी लोक (मलारी जुग बिटेन अब तलक ) : फडक -13
गढ़वाल की विभूतियाँ (मलारी युग से वर्तमान तक ) : भाग 13
Great Garhwali Personalities (Malari Era till Date): Part 13
भीष्म कुकरेती (Bhishm Kukreti )
( ये लेख कु उद्देश्य नवाड़ी साख/छिंवाळी/न्यू जनरेशन तैं गढवाळी भाषा मां अपण ऊँ लोकुं तैं याद कराण जौंक कारण आज गढवाळ च , जौंक वजै से आज हम तैं घमंड च /गर्व च )
महाराजा हर्षवर्धन अर वैका बंश (500-647) क समौ कु उत्तराखंड
हर्षवर्धन कु समौ कु इतिहास अबी तलक पुरो त जाणि द्याओ कुछ बि उपलब्ध नी च . बस चीनी गौन्त्या यूअन -चांग को लिख्युं से काम चलणु च , जैन बोली बल उत्तराखंड का कुछ हिस्सों पर हर्षवर्धन को राज छौ.तै बगत उत्तराखंड मा तीन रज्जा छया
१- स्त्रुघन जनपद - यमुना क पच्छमी पणढाल से लेकी गंगा जी तलक . ये राज मा स्त्रुघन/स्त्रुघिन , मयुर्नगर, ख़ास शहर छया
२- ब्रह्मपुर जनपद - गंगा जी से करनाली लेकी काली गंगा तलक : बड़ाहाट , बैराट , श्रीनगर , लाल ढंग, बिजनौर कु ब्धापुर अर आजौ ब्रह्मपुर गाँव
३- गोविषाण जनपद - नौनीताल क भाबर, तराई भूभाग का अलावा पूरबी भाग का मैदान : इन लगद ये समौ पर तालेश्वर पर पौरव नरेशुं क शाशन छौ . इख तेस से जादा हिन्दू मन्दिर छ्या
जयगुप्त : स्त्रुघन जनपद मा हालांकि बहुमत हिन्दू (सनातनी) कु छौ पण बुद्ध धर्मी अपण प्रचार करदा ही था. इख बौध विद्वान् रौंदू था जैक नाम जाय देव थौ
Reference : Dr Shiv Prasad Dabral , Uttarakhand ka Itihas - 3 (History of Garhwal Uttarakhand , )
(History of Early Garhwal, History of Early Kumaun )
...... बकै 14 वां खंड मा बाँचो
To be continued in 14th part ........
गढवाळ का नामी गिरामी लोक (मलारी जुग बिटेन अब तलक ) : फडक -14
गढ़वाल की विभूतियाँ (मलारी युग से वर्तमान तक ) : भाग 14
Great Garhwali Personalities (Malari Era till Date): Part 14
भीष्म कुकरेती (Bhishm Kukreti )
( ये लेख कु उद्देश्य नवाड़ी साख/छिंवाळी/न्यू जनरेशन तैं गढवाळी भाषा मां अपण ऊँ लोकुं तैं याद कराण जौंक कारण आज गढवाळ च , जौंक वजै से आज हम तैं घमंड च /गर्व च )
देव प्रयाग का वर्मन अर वर्धन रज्जा ( 601-700)
डा डबराल न पलेठा क शिलालेख अर तालेश्वर (अल्मोड़ा ) का भीड़ा (दीवार) का अभिलेखुं का बूता पर ल्याख बल सातवीं सदी मा पर्वताकार राज्य की स्थापना ह्व़े होली
पलेठा राज का रज्जा
पलेठा कु राज टिहरी गढवाल मा देवप्रयाग का न्याड ध्वार को क्षेत्र छौ याने उत्तराखंड को दक्षिण पच्छिमी क्षेत्र पलेठा मा आन्द छया
आदिवर्मन : पलेठा राज कु संस्थापक आदिवर्मन छौ अर हर्ष को समौ पर ही आदिवर्मन न उत्तराखंड को दक्षिण पच्छिमी क्षेत्र मा अपण राज शुरू करी थौ
परमभट्टारक परमेश्वर कल्याणवर्मन : आदिवर्मन को नौनु परमभट्टारक परमेश्वर कल्याणवर्मन थौ
आदित्य वर्धन परमभट्टारक परमेश्वर कल्याणवर्मन क पैथर वैकु नौनु आदित्य वर्मन पलेठा कु रज्जा ह्व़े
करक वर्धन : कारक वर्धन पलेठा राज्य कु आख़री राजा समजे जांद यू आदित्य वर्मन कु दौहित्र माने जांद
                      
Reference : Dr Shiv Prasad Dabral , Uttarakhand ka Itihas - 3 (History of Garhwal Uttarakhand , )
(History of Early Garhwal, History of Early Kumaun )
...... बकै 15 वां खंड मा बाँचो
To be continued in 15th part
गढवाळ का नामी गिरामी लोक (मलारी जुग बिटेन अब तलक ) : फडक -15
गढ़वाल की विभूतियाँ (मलारी युग से वर्तमान तक ) : भाग 15
Great Garhwali Personalities (Malari Era till Date): Part 15
भीष्म कुकरेती (Bhishm Kukreti )
( ये लेख कु उद्देश्य नवाड़ी साख/छिंवाळी/न्यू जनरेशन तैं गढवाळी भाषा मां अपण ऊँ लोकुं तैं याद कराण जौंक कारण आज गढवाळ च , जौंक वजै से आज हम तैं घमंड च /गर्व च )
पर्वताकर का पौरव -राजवंश ( 647- 735 AD)
अल्मोड़ा क तलेश्वरी मा एक पुंगड़औ भीड़ा से प्राप्त ताम्रपत्र से मालूम होंद बल कत्युरी राजाओं से पैली उत्तराखंड पर पौरव राजाओं कु राज छौ . पुरवा या पौरव राजवंश सोम दिवाकर वंशी माणदन अर ताम्रपत्र मा सोम वंशी . पौरव वंश तैं पुरवा का वंशज बताये जांद
विष्णुवर्मन: इन लगद विष्णुवर्मन हर्ष को समौ पर ब्रह्मपुरी को शाषक थौ
वृषभ वर्मन प्रथम : हर्ष को समौ पर ब्रह्मपुरी को शाषक थौ
परमभट्टारक महाराजाधिराज अग्निवर्मन: वृषभ वर्मन को नौनु परमभट्टारक महाराजाधिराज अग्निवर्मन ह्व़े. परमभट्टारक महाराजाधिराज अग्निवर्मन गो ब्राह्मण हितैषी थौ . हूण अर कुछ-कुछ बुद्ध धर्म को कारण वर्ण शंकर व्यवस्था कुमाऊं अर गढवाल मा बि सौरी/फ़ैली गे छे . अर परमभट्टारक महाराजाधिराज अग्निवर्मन वर्ण शंकर व्यवस्था तैं पुरी तरां खतम कार . बैरी विणाश मा परमभट्टारक महाराजाधिराज अग्निवर्मन ज्युंरा (यमराज) क रूप मा माणे जान्द .
परमभट्टारक महाराजाधिराज द्युति वर्मन या द्विज वर्मन : परमभट्टारक महाराजाधिराज अग्निवर्मन कु नौनु द्विज वर्मन थौ
विष्णुवर्मन दुसरू : सैत च परमभट्टारक महाराजाधिराज द्युति वर्मन/द्विज वर्मन कु नौनु विष्णुवर्मन दुसरू, पौरव राज को आखरी रज्जा छौ . वो मयल़ू (विनय), भड़ (बीर,शौर्यशाली ) धीरू, गम्भीर छौ
पौरव -राजवंश का मंत्री देवद्रोणयधिकृत एकास्वामिन: तालेश्वर ताम्रपत्र कु हिसाब से एकास्वामिन पौरव बंश कु मंत्री छौ अर वैकी पदवी देवद्रोणयधिकृत छे . एकास्वमिन कु समौ क पता नी च.
पौरव -राजवंश का मंत्री देवद्रोणयधिकृत मारीपतशर्मन : तालेश्वर ताम्रपत्र कु हिसाब से मारीपतशर्मनपौरव बंश कु मंत्री छौ अर वैकी पदवी देवद्रोणयधिकृत छे
आमात्य भद्र्विष्णु: आमात्य भद्र्विष्णु पौरव बंश को एक ख़ास मंत्री छौ
Reference : Dr Shiv Prasad Dabral , Uttarakhand ka Itihas - 3 (History of Garhwal Uttarakhand , )
(History of Early Garhwal, History of Early Kumaun )
...... बकै 16 वां खंड मा बाँचो
To be continued in 16th part
                                     गढवाळ का नामी गिरामी लोक (मलारी जुग बिटेन अब तलक ) : फडक -16
गढ़वाल की विभूतियाँ (मलारी युग से वर्तमान तक ) : भाग 16
Great Garhwali Personalities (Malari Era till Date): Part 16
भीष्म कुकरेती (Bhishm Kukreti )
( ये लेख कु उद्देश्य नवाड़ी साख/छिंवाळी/न्यू जनरेशन तैं गढवाळी भाषा मां अपण ऊँ लोकुं तैं याद कराण जौंक कारण आज गढवाळ च , जौंक वजै से आज हम तैं घमंड च /गर्व च )
Garhwali and Kumauni Languages Form in Paurav Era ( 647- 735 AD)
With the aid of Copper Plates found in Taleshwar, Almoda, Dr Shiv Prasad Dabral concludes tha there was certainly modified form of Garhwali and Kumauni languages than the older one Khas-and Kanaiti mixed Kumauni and Garhwali. Dr Dabral states that the language was Deshbhasha of common people which later on developed into refined Garhwali and Kumauni languages ( Uttarakhand ka Rajnaitik v Sanskritik Itihas -3, pp 420-421)
As is the tendency in present time, the rulars (Paurav Vanshi) transformed the original name into Sanskritized names as today, most of the goverment hordings are either in Hindi or in English and the names of villages are changed as per Hindi /English grammar or phonology than Kumauni or Garhwali.
Dr Dabral states that
" पौरव वंश के समय ग्रामों व खेतों के नाम समकालीन देशभाषा में थे. किन्तु पौरव शासनों (के ताम्रपत्रों ) में देश भाषा के नामों को संस्कृत रूप देकर ताम्रपत्रों में अंकित किया गया , यथा:
डा डबराल को बुलण छ बल पर्वताकर पौरव राज वन्श्युं क समौ पर कुमौं अर गढवाळ मा देशभाषा मा बचळयान्द छया पण राजाऊं अर बड़ा लोखुंन गढवाळी कुमाउनी का गाँव तैं ताम्रपत्रों मा संस्कृत रूप देकी अंकित कार अर या प्रवृति आज हिंदी या अंगरेजी सरकारी अधिसूचना मा बि दिखेंद जब गौं क नाम बदली जान्दन .
डा शिव प्रसाद डबराल न य़ी दिरिषटान्त दिने :
ताम्रपत्रों मा गाऊं नाम ( 647- 735 AD) असली देशी भाषा मा गाऊं/पुंगड़/खेत का नाम
उदुम्बर बास ------------------------ ------------------------------------------------------ गोविलबास
कपिलगर्ता ------------------------------------------------------------------------------कपिल्यागाड
कोल्लपुरी ------------------------------------------------------------------------------ कोलिगांव
खंडाकप्ल्लिका ------------------------------------------------------------------------------ खंड गाऊं
खट्टल्लिका ---------------------------------------------------------------------------- खाटळी
खोहिलका ----------------------------------------------------------------------------- खोळी
गोहट्टबाटक ------------------------------------------------------------------------------- गोरबाट
चम्पक -----------------------------------------------------------------------------------चम्पा
चंदुलाकपाली ------------------------------------------------------------------------------------ चंडा पाली
छिद्र्गर्ता ------------------------------------------------------------------------------------ उड़्यार
जयभट्टपल्लिका -------------------------------------------------------------------------------------- जैगाँ भट्टगाँ
जम्बुसालिका --------------------------------------------------------------------------------------- जामुण सारी
डिणडिका ------------------------------------------------------------------------------------------ डिंडा
डुभाया ---------------------------------------------------------------------------------------------- डोभ
तोली ----------------------------------------------------------------------------------------------- तोळी
तापल्ली ------------------------------------------------------------------------------------------------ थापळी
दीपपुर ------------------------------------------------------------------------------------------------- द्यूल़ा
दूणणा ---------------------------------------------------------------------------------------------------- दूणी
देवखल ----------------------------------------------------------------------------------------------------- दिख्य्त
द्रोणी -------------------------------------------------------------------------------------------------------- दूण , दून
निम्बसारी --------------------------------------------------------------------------------------------------- निमसारी
पल्ली ---------------------------------------------------------------------------------------------------- पाल़ी
बुरासिका ------------------------------------------------------------------------------------------------- बुरांसी
बृद्धतर पाल्लिका ----------------------------------------------------------------------------------------- बड़ी पाली
बंजाली -------------------------------------------------------------------------------------------------- बंजागौं
भट्टपल्लिका --------------------------------------------------------------------------------------------- भट्ट गाँ
भूतप्ल्लिका ---------------------------------------------------------------------------------------------- भूत गाँ
मालवक क्षेत्र ------------------------------------------------------------------------------------------- मालूंखेत
रजक्स्थल --------------------------------------------------------------------------------------------- धोबीघाट
लवणोंदक -------------------------------------------------------------------------------------------- लुणियासोत
सेम्मक क्षेत्र ---------------------------------------------------------------------------------------- सीम
सेम्महिका ----------------------------------------------------------------------------------------- सिमलगा
गढवा ळी अर कुमाउनी भाषा का जणगरुं /विद्वानुं तैं भाषाओं क पुराण/ इतिहास लिखद दें इन बातों ध्यान रखण जरोरी छ .
Reference : Dr Shiv Prasad Dabral , Uttarakhand ka Itihas - 3 (History of Garhwal Uttarakhand , )
(History of Early Garhwal, History of Early Kumaun )
...... बकै 17 वां खंड मा बाँचो
To be continued in 17 th part

1 comment:

  1. गढ़वाल का इतिहास हम सभी के समक्ष प्रस्तुत करने के लिए आपका धन्यवाद, आपका यह भगीरथ प्रयत्न अवश्य ही लोकोपकारी, लोकहितैषी और सभी के लिए लाभप्रद होगा। गढ़वाली भाषा में होने के साथ साथ यदि यह हिंदी में भी हो तो इसकी उपादेयता और भी अधिक होगी। आशा है इसकी ओर आपका ध्यान अवश्य जाएगा।

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आपका बहुत बहुत धन्यवाद
Thanks for your comments