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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Sunday, December 25, 2011

ह्यूंद पर गढवाळी मा कविता फड़कि -३


(Poetries on Autum , Winter, Snowfall in Garhwali Language)
                                        
                भीष्म कुकरेती
                    
 
           ह्यूंद पर एक लोक गीत
 
गढवाळ मा ह्यूंद एक महत्व पूर्ण मौसम /ऋतु च. हेमंत का बाद या बग्वाळ , गोधन, इगास का बाद
खेती को काम कम ही रै जांद अर पहाड़ कि जनानी हुय्न्द का बगत घास, लखड़ निडाणो बान घास लखड़
मा व्यस्त रौंदा छया . पूस का मैना माने मैत /मायका कू मैना अर ब्वारीयूँ तैं अपण मैत जा णो मौका
मिली जान्दो छौ . पूस मा मैत जाण पर लोक क्लाकारु न भौत सा लोक गीत गंठयाँ/रच्याँ छन
जब प्रवास आम ह्व़े गे त जनानी मंगसीर - पूस मा अपण कजे (पति) तैं मिलणो देश (प्रवास मा की जगा )
जाणे इच्छा करदी छे अर याँ पर भौत इ प्रसिद्ध लोक गीत इन च :
कब आलो ह्यूंद मंगसीर मैना , हे ज्योरू ! हे ज्योरू मीन दिल्ली जाण
हे ज्योरू होटल की रुट्टी उखी खाण , हे ज्योरू ! मीन दिल्ली जाण
कब आलो ह्यूंद मंगसीर मैना , हे ज्योरू मीन दिल्ली जाण
प्यायी सिगरेट फेंकी चिल्ला, प्यायी सिगरेट फेंकी चिल्ला
घुमणो कू जाण मीन लाल किल्ला , हे ज्योरू लाल किल्ला
कब आलो ह्यूंद मंगसीर मैना , हे ज्योरू मीन दिल्ली जाण
आलू गोभी को बणाये साग , आलू गोभी को बणाये साग
घुमणो को जाण मीन कारोल बाग़ , हे ज्योरू करोला बाग़
' हे ज्योरू ..' लोक गीत वै बगतो सामजिक परिस्थिति बयान करण मा
भौत ई सक्षम च . लोक गितांगो योही त कमल च बल समौ का गीत गंठयाँदन/रचदन
 
आजौ /आधुनिक कवितौं मा ह्यूंद
 
अबी तलक जग्गू नौडियाल अर बीना बेंजवाळ की ह्यूंद पर लिखीं
कवितौं छाण निराळ कार अर पायी कि दूयूँ का कवितों मा विषय, अनुभूति, अनुभव ,
प्रतीक बिलकुल बिगल्यां छन . छन दुई कविता ह्यूं पर हरेक रूप मा द्वी
बिगळयाँ छन. अर कैन बि भाषा को योही इ सुभाग/सौभाग्य होंद बल
एकी विषय पर बिगळी कविता ह्वावन अर बिगळयूँ भाव पैदा कौरन . जग्गू अर बीना
क कविता हर मामला मा अलग छन
कवि गोकुला नन्द किमोठी न ह्यूंद पर निखालिस कविता त नि गंठयाई/रची पण
चै ऋतु कविता मा 'ह्यूं' का वर्णन बड़ो बढ़िया ढंग से कार अर या तीसरी ह्यूं पर कविता
जग्गू नौडियाल अर बीना बेंजवाल से बिगळी च . गढवा ळी को यो सुभाग च येकी विषय पर
तीन तरं की कविता :
 
          ह्यूंद 

 
कवि : गोकुला नन्द किमोठी
रचना काल : १९७९
 
ह्यूं भरीं डांडी काँठी ,
पोथलूं का ट्वल ऐग्याँ
हेमंत औण वाळ
घर घर रैबार देग्याँ.
ओबर्युं मा कछेड़ी लगीं
तापेंदी आग छ.
बांजै की खूंडकी जगीं ,
गौथुं को साग छ .
भट्ट बुकोंदा कथा
राजा राणी की लगीं
मंगसीर पूस कनी
दीदी मैत्वाड़ ऐगीं.
सर सर सस्राट लग्युं
झड़झड़ पातकु लैगे
ठंडो बथाऊं पाल़ो
शिशिर लेकी ऐगे .
भौं की संगरांद औंदी
फगुण होळी च , बसंत बाटु हेन्नी छ
किमोठी न ह्यूंद तैं प्राकृतिक बदलाऊ मानी
अर जन गाँव मा होंद उन्नी वर्णन कार . वर्णन मा क्वी
फोकटिया बात ना. जन होणु तन्नी बताई . इख तलक कि
अपण तर्फां क्वी सन्देश या विचार बि दे . या च किमोठी
की सरलता , सौम्यता .
Copyright @ Bhishm Kukreti 

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