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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Tuesday, October 11, 2011

लोक बाराखड़ी

Posted by Deepak Kukreti 
क - कंचनी डाळी कु वासुनि कन। 
ख- खाते पीते राम भजन। 
ग- गंगा जी मा स्नान कन। 
घ- घरों-घरों की बात नि सुण। 
ङ्- गंगा जी गन्दी नि कन। 
च-चंचल नारी कू संग नि कन। 
छ- छलिया मुख की बात नि सुण। 
ज- जंगलू मा वासु नि रैण। 
झ- झूठि मुटी बात नि करण। 
ञ- येनी बात कैमू नि बोलण। 
ट- टम्का पैस गांठि मा रखण। 
ठ- ठगा आदिम दगड़ी सौदा नि कन। 
ड- डगड्यनी ढुंगी मा खुटो नि रखण। 
ढ- ढवाली बात कभी नि कन। 
ण- णखदि नरमी कु वास नि कन। 
त- ताता रोस मा झगड़ा नि कन। 
थ- थता थुमा सब दगड़ी कन। 
द- दया धर्म सदा रखण। 
ध- धरती माता की सेवा करण। 
न- नकली बात कभी नि बोन। 
प- पढ़ण-लेखण पर ध्यान देण। 
फ- फंचा आदिम की बात सुण। 
ब- बांगी लकड़ी कांधी मा नि रखण। 
भ- भरियाँ भवन की चोरी नि कन। 
म- मंगण आदिमू की बात नि सुण। 
य- यनि-यनि बात मन मा रखण। 
र- राम नाम सदा भजण। 
ल- लंगी लंगी डाळी कू टुक नि काटण। 
व- वखला मा नारियों दगड़ी बात नि कन। 
ह- हल लगोण मा सरम नि कन। 
स- साधु, संन्तो की सेवा करण। 
ा- सनातन धर्म की सेवा करण। 
भा- सासू ससुर की सेवा कन। 
क्ष- अक्षरों पर ध्यान देण। 
त्र- त्रणी तार भगवान करद। 
ज्ञा- ज्ञानी यानी एकी तरह बणण।

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