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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Thursday, July 28, 2011

छकि छक्किक खाणु छौं

(रचनाकार: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु)

मेरु क्या तुमारु छ, बाल बच्चा पळ्ना छन,
क्या बोन्न हे, तुमारु ही सारू छ...
हम नेतौं का हाथ देखा, लोकतंत्र प्यारू छ,
"छकि छक्किक खाणु छौं",
क्या बोन्न हे, तुमारु ही सारू छ...
तुम भि खावा मैकु बतावा, जिंदगी सुदि न गंवावा,
हमारा तुमारा हाथ मा, लोकतंत्र प्यारू छ,
"छकि छक्किक खाणु छौं",
क्या बोन्न हे, तुमारु ही सारू छ...
जन भि सोचा अपणा मन मा,
आज बग्त हमारू छ, हमारू क्या छ,
कृपा तुमारी, सब कुछ तुमारु छ,
"छकि छक्किक खाणु छौं",
क्या बोन्न हे, तुमारु ही सारू छ...
हमारा खातिर जन भि सोचा,
लोकतंत्र प्यारू छ,
तुमारा तिलु कू तेल पेणु,
"छकि छक्किक खाणु छौं",
क्या बोन्न हे, तुमारु ही सारू छ...

(सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित २७.७.२०११)

1 comment:

  1. लोकतंत्र प्यारू छ,
    तुमारा तिलु कू तेल पेणु,
    "छकि छक्किक खाणु छौं",
    क्या बोन्न हे, तुमारु ही सारू छ...

    ..sach sabhi to khaye jaa rahen hain, khaye jaa rahe hain...
    bahut hi badiya saarthak prastuti ke liye aabhar!

    ReplyDelete

आपका बहुत बहुत धन्यवाद
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