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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Thursday, July 28, 2011

रौंत्याळि डांड्यौं मा

(रचनाकार: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु")

जख बिति होलु बचपन, सोचा हे! हमारू,
देवतौं कू मुल्क छ, हमारू भी प्यारू,
हरा भरा बण अर लाल माटा की मटखाणी,
गाड अर गद्न्यौं मा बगदु ठण्डु पाणी,
बथौं कू फुम्फ्याट अर बरखा बत्वाणि,
धार ऐंच बैठिक हेरा, भौत खुश होंदु छ पराणि...
हे दिदौं, भुलौं वे मुल्क की, हम्न कदर नि जाणि,
दूर देश परदेश मा जब-जब याद औन्दि छ,
भौत क्वांसू होंदु छ हमारू पापी पराणि,
टरकणि, मन मा गाणी, वख छ सब्बि धाणी,
लगदि होलि आपका मन मा स्याणी,
जरूर जवा "रौंत्याळि डांड्यौं मा",
देख्यन, कथगा खुश होलु पराणि,
दाळ, गौथ, खाजा, बुखणा, स्यो, नारंगी,
हे! मिलली हमारा मुल्क घ्यू की माणी.
सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित दिनांक: २०.७.२०११

1 comment:

  1. bahut badiya!
    Rauteli dandiyon maa ka gaana barbas hi gungunane lagi hun... bahut achha laga...dhanyavaad!

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आपका बहुत बहुत धन्यवाद
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