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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

उत्तराखंडी ई-पत्रिका

Tuesday, July 12, 2011

तिबारी-डिंडाळी

तिबारी - डिडांळी और छ्जा - धुर्पळी।
गंज्याळी की गांज सी गुंजदी उर्ख्याळी॥

चुल्ल की मुछ्याळी औंछ पळ्यो की भदाळी।
चाय कि कितळी निस भत्ती की पिठळी॥

फ़ाणु पळ्यो झूळ्ळी झंगोरू तातू छ कंडाळी।
बनी - बनी क खाणु न भुरी छ भदाळी॥

गुर्याळ-बांज कुळैं-बुरांस झपलंगी बणी डाळी।
डांडी-कांठी गाड-गदनियो मा छ्यी हरियाळी॥

हाथ धगुली नाक नथुली गौळ की खग्वाळी।
अंगडी फ़ुतकी सजदी कन घागरी फ़ुर्क्याळी॥

ढोल दमो बजद जब डौरु और थकली।
देवी दिवतो कि तब जात्रा जाली॥

बोण की घसेरी लेन्दी घास की गडोळी।
ग्वेरू पन्डेरियो कि कन जांदी बणी टोली॥

भला लोग भलु समाज मनखी बडु मयाळी।
देवभूमी क छवा हम कुमयां और गढवाळी॥


सर्वाधिकार सुरक्षित @ विनोद जेठुडी, 2010
7 जुलाई 2011 @ 04:26 PM

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