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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Wednesday, September 29, 2010

हिमालय बचावा

आज आवाज उठणि छ,
कैन करि यनु हाल वैकु,
हे चुचों! यनु त बतावा,
हिम विहीन होणु छ,
जख डाळु नि जम्दु,
हिमालय सी पैलि,
वे हरा भरा पहाड़ बचावा,
बांज, बुरांश, देवदार लगावा,
कुळैं कू मुक्क काळु करा,
जैका कारण लगदि छ आग,
सुखदु छ छोयों कू पाणी,
अंग्रेजु के देन छ कुळैं,
पहाड़ हमारा पराण छन,
वैकी सही कीमत पछाणा.

कनुकै बचलु हिमालय?
वैका न्योड़ु गाड़ी मोटर न ल्हिजावा,
तीर्थाटन की जगा पर्यटन संस्कृति,
जैका कारण होणु छ प्रदूषण,
पहाड़ की ऊँचाई तक,
ह्वै सकु बिल्कुल न फैलावा.

पहाड़ कूड़ा घर निछ,
प्रकृति का सृंगार मा खलल,
वीं सनै कतै न सतावा,
ये प्रकार सी प्रयास करिक,
प्यारा पहाड़ बचावा,
हिंवाळी काँठी "हिमालय बचावा".

रचनाकार: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
(सर्वाधिकार सुरक्षित, यंग उत्तराखंड, मेरा पहाड़, पहाड़ी फोरम पर प्रकाशित)
2.7.2010 को रचित....दिल्ली प्रवास से

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