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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Thursday, April 1, 2010

गढ़वाली ग़ज़ल -सम्राट मधु सुदन थपलियाल कि कुछ ग़ज़ल

तेरो रूप हेरणु छ , पराण हर्बि हर्बि
एक नजर त देख , मी पछ्याण हर्बि हर्बि

जाण कि छ्वीं न लगौ अयूँ छौं मुश्किल से
आज छौं पर भोळ मीन नी आण हर्बि हर्बि

कुछ न कुछ फुके छ तेरी जिकुड़ी कि भौण
प्रीती क सवाद कि चिलखाण हर्बि हर्बि

जणदु छौं मै, माया को कौथिग वीरेगे
भली नी छ मन मा या घिमसाण हर्बि हर्बि

आंख्यु आन्खुं सानि नी छ इथ्गा बगत
तू बाच गाड मिन त धाई लगाण हर्बि हर्बि

सौण की कुएडिम मेरी आँखी बरखली
रुंदा -रुंदी तिनीS त बुथाण हर्बि हर्बि
Copyright Madhusudan Thapliyal, Haridwar, Uttarakhand, India, 2010

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