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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Wednesday, March 3, 2010

उम्मीद

तुम चले जाओगे तनहाइयाँ रह जाएँगी,
वक्त तो गुजरेगा, वक्त की बेवफाइयां रह जाएँगी,
मुझसे नाराज नाहो ऐ मेरी जिन्दगी, बस तेरी मेहेरबनियाँ रह जाएँगी.

देना होगा साथ तुझे मेरा वरना जिन्दगी कैसे कट पायेगी,
इस जहाँ के बाद गर और है जहाँ कोई,
तुझसे शायद मुलाकात वहीँ हो पायेगी.

मोहन सिंह भैंसोरा,
सेक्टर-९/८८६, आर. के. पुरम,
नई दिल्ली

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