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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Monday, January 4, 2010

"पहाड़ से पलायन"

आजादी से पहले से जारी है,
आज भी वही लाचारी है,
क्योंकि, रोजगार की तलाश में,
भागते लोगों के लिए,
संपर्क सड़कों का बनना,
अपने उत्तराखंड में जारी है.

अतीत में कोसों पैदल चलकर,
जाते थे प्रवासी,
बाल बच्चों सहित,
अपने पैत्रिक गाँव,
बदल गए हैं मन सभी के,
अब नहीं बढ़ते हैं पाँव.

कसूर उन अध्यापकों का भी है,
जिन्होंने हमें पहाड़ में पढाया,
पढ़े लिखे युवकों ने पहाड़ से,
पलायन का मन बनाया.

आज पहाड़ में पढाई के लिए,
खुल गए हैं कई संस्थान,
पढेंगे, तकनिकी शिक्षा लेंगे,
फिर भागेंगे वे भगवान.

अपने ही उसे छोड़कर,
दूर भाग रहे हैं भगवान,
देखो कितना मतलबी है,
आज हर इंसान.

जख नाक छ, सोनू निछ,
जख सोनू छ, निछ नाक,
शिक्षित छन पहाड़ मा,
पूँजी, उद्योग की बस बात .


Poet: Jagmohan Singh Jayara "zigyansu"
(Reight reserved)
j_jayara@yahoo.com

1 comment:

  1. palayan pr likhi kavita bahut achchci lagi,dhanyvad,?happy new year to all uttrakhadi bandhuon ko....

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आपका बहुत बहुत धन्यवाद
Thanks for your comments