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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Monday, November 2, 2009

लगुल छै च त, ठंकुरु घटे ही जालू !

ब्वौजी अभी जवान ही छा, पर , अचाण्चकी वा हम सब थै छोड़ी चलगी , उ भी ..., भरी ज्वानिम ! भैजी परेशान ! बोड़ी हक - चक ! गौ वाल भोंच्या अर मी .. खौल्यु, की, यु, हवा त, क्या हवे ! न रोग न बयाधि ! न मुडरू न डौ ! न हर्पण , न उकाई ! यु बिजोग पोडी त पोडी किलै !
भैजी एक कूणम जम्प्या सी बैठ्या छा चुपचाप ! गौ का लोग एक एक्कै मुख पर छा आण अर अप्ण अपण तरीका से छा बोड़ी अर भैजी थै सांत्वना दीणा ! एक बुजर्गल बोली " बिटा जांवाला दगड कुई नि गे... जू हून छो सी ह्वै गे ! अब अफु थाई संभाल " तभी पधान काकी आई अर बोड़ी से बुन बैठी ................
" दीदी , ... सैद वीकू इतुग्वी तक राइ होलू हमर दगड .. अब हुणि थै क्वी टाल थुडी सकद तबा ...
भैजी तरफ देखी बुन बैठी ... ब्वारी त गे ना ...., ब्यटा त छै च ना ........
" लगुल छै च त, ठंकुरु घटे ही जालू "
मिन बोली .. काकी .. त ब्वारी ठकुरु .. अर भैजी लगुलु व्हा आपक हिसाब से .. है ना ????
वा बोली 'हाँ..." त एकु मतलब यु ह्वै की ब्वौजी याने स्त्री जात मरी अर पुरुष बच्यु रेगी त हैकू ब्यो करै जय सक्द ... व बोली ..... 'हाँ" ..
अर जू दादा नि रैन्दुत , याने ठंकुरु छै च पर लगुलु नि च, या , नि रायु त , क्या ? बौजी हैकू बियो कई सक्द छा क्या ??

उत्तर छो " पत नी " ...

पराशर गौर
१६ अक्तूबर ०९ दिन में २.३५ पर

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