उत्तराखंडी ई-पत्रिका की गतिविधियाँ ई-मेल पर

Enter your email address:

Delivered by FeedBurner

उत्तराखंडी ई-पत्रिका

उत्तराखंडी ई-पत्रिका

Monday, September 21, 2009

उत्तराखंडी कवि सम्मलेन"

एक बार कखि उत्तराखंडी कवि सम्मलेन कू आयोजन ह्वै. आयोजनकर्ताओंन विषय रखि "पर्वतीय नारी"...सब्बि कव्यौन सोचि...अपणी धर्मपत्नी भि त पर्वतीय नारी छ, किलै न ऊंका बारा मा ही कविता बोले जौ हास्य रूप मा.


एक कवि:

हमारी पर्वतीय नारी,
ब्याळि वींन मै फर,
स्यूं सग्त,
कर्छुलै की मारी,
खाँदा छैं त खैल्या,
निखाणि होलि तुमारी,
मैकु होयुं छ मुन्डारु,
आज अति भारी.

दूसरा कवि:

हमारी पर्वतीय नारी,
क्या बोन्न,
भग्यान छ भारी,
छोड़दि निछ डिसाणि,
ज्व छ वींकी लाचारी,
कब बणाला चाय मैकु,
करदी छ इंतजारी,
बात माणा जू,
रन्दि खुश भारी.

तीसरा कवि:

हमारी पर्वतीय नारी,
क्या बोन्न,
मिजाज वींका भारी,
वींकी नजर मा,
फुन्ड धोल्युं छौं मैं,
ज्व छ मेरी लाचारी,
कैमा नि बोल्यन,
कन्डाळिन भि,
सपोड़्यु छौं.

चौथा कवि:

हमारी पर्वतीय नारी,
क्या बोन्न,
वीं सनै पसन्द छ,
आलु कू थिन्च्वाणि,
हमारा घौर आऊ क्वी,
नि पिलौण्यां पाणी,
द्वी रोठी ज्यादा खौलु,
मन मा रन्दि,
भारी कणताणी.

पांचवां कवि:

हमारी पर्वतीय नारी,
क्या बोन्न,
प्रचंड वीन्कु रूप छ,
हाथ ध्वैक भूक छ
सैडा गौं का लोखु तैं,
वींकी भारी डौर छ,
मैन क्या बोन्न,
बिराळु बण्युं,
नर्क अपन्णु घौर छ.

(सर्वाधिकार सुरक्षित,उद्धरण, प्रकाशन के लिए कवि,लेखक की अनुमति लेना वांछनीय है)
जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासू"
ग्राम: बागी नौसा, पट्टी. चन्द्रबदनी,
टेहरी गढ़वाल-२४९१२२
निवास: संगम विहार, नई दिल्ली
17.9.२००९, दूरभास:9868795187
E-Mail: j_jayara@yahoo.com

No comments:

Post a Comment

आपका बहुत बहुत धन्यवाद
Thanks for your comments