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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Wednesday, August 19, 2009

"हे मानव"

क्यों भाग रहा है तू दिन रात?
चाहत तेरी बढती जाती,
क्या है ऐसी बात,
अकेला है इस धरती पर तू,
अकेला ही जायेगा,
जिसको तू अपना समझता,
कोई काम नहीं आएगा.

अटल सत्य है कर्म करना,
लोभ लालच में नहीं मरना,
क्यों करता है तू अभिमान?
कि कोई नहीं मेरे सामान,
पद, पैसा, सौंदर्य, लालच,
ये सब हैं नाशवान,
प्रभु ने तो सबको बनाया,
एक मासूम इंसान,
माया में भटकर,
बन जाता है हैवान,
और कहता है,
ये मेरा वो मेरा,
सब कुछ माया है,
अगर समझे इंसान,
कर्ता धर्ता वो ही सबका,
"हे मानव" तू पहचान.

(सर्वाधिकार सुरक्षित,उद्धरण, प्रकाशन के लिए कवि,लेखक की अनुमति लेना वांछनीय है)
जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासू"
ग्राम: बागी नौसा, पट्टी. चन्द्रबदनी,
टेहरी गढ़वाल-२४९१२२
निवास: संगम विहार, नई दिल्ली
19.8.2009 दूरभास:9868795187

1 comment:

आपका बहुत बहुत धन्यवाद
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