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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Monday, August 10, 2009

अपनेपन की भूल


जिन्हें हम अपना समझते हैं
आँखों में अगर उनकी
झाँककर देखते हैं
तो दिखता क्यों नहीं
आँखों में उनके प्यार
एक पल तो सबकुछ
अपना सा लगता है
पर दूजे पल ही क्यों
बदला दिखता संसार

सोचकर झटका लगता
दिल को कि-
जिन्हें हम अपना समझते हैं
वे वक्क्त पर क्यों मुहँ मोड़ लेते हैं
दो बोल क्या बोल लेते हैं
वे मधुर कंठ से
हम उन्हें अपना समझने की
क्यों भूल कर बैठते हैं

ढूँढो तो सबकुछ मिल सकता है
देखो अगर अपनेपन से तो
सबकुछ अपना सा लगता है
पर 'कविता' राज समझी नहीं
कि चीज़ जो कल्पना में रहती है
उसी को पाने की क्यों
मन में बार-बार तमन्ना जगती है

Copyright @Kavita Rawat, Bhopal,2009

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