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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Tuesday, August 25, 2009

"पहाड़"

पहाड़, याने मुसबतों का भंडार,
उनके लिए, जो ऐसा सोचते हैं,
क्या है उस पहाड़ में?
ऐसा भी बोलते हैं,
लेकिन! फिर भी जाते हैं,
घूमने, अपनी गाड़ी लेकर,
पहाड़ पर प्रदूषण फैलाने.

पहाड़ में पहाड़ियों के,
प्राण बसते हैं,
देवभूमि से दूर रहने पर भी,
जन्मभूमि को याद करते हैं.
क्योँ न करें?
पहाडों की गोद में,
बचपन बिताया,
वहां के अध्यापकों ने,
लिखाया पढाया.
ऊंचे पहाड़ों को निहार कर,
बड़ा बनने का संकल्प लिया,
फिर पहाड़वासियौं ने,
देश और विश्व स्तर पर,
पहाड़ का नाम रोशन किया.

पहाड़ पर प्रकृति का भंडार है,
गाद,गदेरे,जीवनदायिनी नदियाँ,
डांडी, हिंवालि काँठी,बुरांश,देवदार,
पहाडों के सृंगार हैं.

फ्योंली,पय्याँ,आरू,घिंगारू,
जब फूलते हैं पहाड़ पर,
लगता है क्या सृंगार किया है,
पहाड़ों की सुरम्य वादियौं ने,
हरी भरी डांडयौं ने,
देखकर मन मोहित जाता है,
और कहता है,
पहाड़, हमारी जन्मभूमि,
देवताओं की प्रिय भूमि,
अतीत में वीर भडों ने चूमी,
धन्य हैं हम, जो है हमारी,
प्राणो से प्यारी,
पवित्र उत्तराखंड भूमि.

कहता कवि "जिज्ञासु"
पहाड़, प्रेरणा के पहाड़ हैं,
मुसीबतों के नहीं,
जो देते हैं हमको,
नहीं मिल सकता है,
और कहीं.

(सर्वाधिकार सुरक्षित,उद्धरण, प्रकाशन के लिए कवि,लेखक की अनुमति लेना वांछनीय है)
जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासू"
ग्राम: बागी नौसा, पट्टी. चन्द्रबदनी,
टेहरी गढ़वाल-२४९१२२
निवास: संगम विहार, नई दिल्ली
२४.८.२००९, दूरभास:9868795187

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