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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Friday, July 10, 2009

जबरू का घट्ट(घराट)"

उत्तराखंड के सूदूर एक गाँव का छोरा छापर जबरू बचपन में अपनी माँ के साथ हर काम में हाथ बंटाता था. उसकी माँ सुबह चार बजे जान्दरी में कोदा, गेंहू पीसती थी. जान्दरी की घग्राट जब होती तो जबरू को खूब नींद आती थी. एक दिन जब उसकी माँ जान्दरी चला रही थी तो उसने देखा, कमजोर माँ को बहुत कस्ट उठाना पड़ता है. वह उठा और माँ के साथ जान्दरी घुमाने लगा. अब उसकी माँ जान्दरी घुमाते हए पुरातन गीत गुन गुनाने लगी.

पहाड़ पर बस्गाळ लगा हुआ था. जबरू ने देखा उसके सेरे का एक कोना गाड के नजदीक था. गाड में अथाह जल बह रहा था. उसने अपनी माँ से पूछा माँ क्योँ न हम यहाँ पर अपना एक घट्ट बना लें. उसकी माता जी ने कहा "बेटा यनु त ह्वै सकदु छ, पर पैसा कख बीटि ल्ह्योंण". माँ की बात सुनकर जबरू ने कहा, माँ इस बात की तू चिंता मत कर.

जबरू के मन में एक ही बात आ रही थी कैसे अपना घराट बनाऊं. गाँव में एक आदमी अपने खेत बनवा रहा था. जबरू उस आदमी के साथ दिहाडी पर काम करने लगा. लगभग तीन महीने तक काम करने के बाद जबरू के पास पांच सौ रूपये जमा हो गए.

जबरू एक घराट मिस्त्री इन्द्रू के पास गया और अपना घट्ट बनाने की बात कही. इन्द्रू ने बताया घराट बनाने में कुल खर्चा तीन सौ रूपये आएगा. जबरू का हौसला बढ़ गया क्यौन्कि उसके पास तो पूरे पांच सौ रूपये थे. जबरू ने इन्द्रू से कहा आप चिंता मन करो पैसा है मेरे पास. इन्द्रू ने जबरू के खेत में एक बड़ा सेमल का पेड़ देखा और उसको काट कर घराट की पंडाळ बनाई. पंडाळ के तैयार हो जाने पर जबरू कितना खुश था कहना मुश्किल था. इन्द्रू ने जबरू को कहा, कल ये पंडाळ जहाँ घट्ट बनाना है ले जाना है. तुम सारे गाँव के लोगों को इसे ले जाने के लिए कह देना.

जबरू ख़ुशी ख़ुशी सारे गाँव में लोगों के पास गया और कहा, जहाँ मैं घराट बनवा रहा हूँ वहां पंडाळ ले जानी है. सारे गाँव के लोग जबरू के घट्ट लगाने से काफी खुश थे. सारे लोग मिलकर घट्ट की पंडाळ घराट वाले स्थान पर ले गए. इन्द्रू ने गाड से एक कूल बनाकर पंडाळ में पानी छोड़कर देखा तो जबरू बहुत खुश हुआ. घराट के पाट अपने पहाड़ के पैडुळ से मंगवाए गए थे. इन्द्रू ने घट्ट की जब स्थापना की तो जबरू के साथ साथ सारे गाँव के लोग बहुत खुश हुए.

घट्ट के उदघाटन के दिन जबरू, उसकी माँ और सारे गाँव वाले बहुत खुश थे. औजि ढोल दमौं बजा रहे थे और लोग ढोल की थाप पर नाच रहे थे. कुछ लोग वहीँ पर हलवा, दाल और भात बना रहे थे. इन्द्रू ने पूरी तरह से घट्ट का मुयाना किया. गाड से कूल में पानी छोडा गया जो पंडाळ से होता हुआ घट्ट की भेरण तक पहुंचा. घट्ट तेजी से घूमने लगा तो जबरू का ख़ुशी का ठिकाना न रहा. घट्ट के रेड़े में पहाड़ का कोदा पीसने के लिए भरा गया था.

गाँव के लोग जबरू के घट्ट से पिसाई कर वाते और एक दोंण पर पिसाई एक पथा आटा देते थे. गाँव के बेटी ब्वारी तो बहुत खुश थी क्यौन्कि अब उन्हें घर की जान्दरी से कुछ आराम हो गया था. समय बीतता गया और गाँव के लोग पढ़ लिखकर पलायन करने लगे. गाँव के एक अवकाश प्राप्त फौजी ने डीजल की चक्की लगवा दी और जबरू का घट्ट खामोश हो गया. समय के साथ गाड में पानी भी कम हो गया और जबरू नये ज़माने के आते आते बूढा हो गया.

आज घट्ट की नई तकनीकी का विकास हेस्को संस्था द्वारा किया गया है. संस्था पहाड़ में कई जगह आधुनिक घट्ट (घराट) लगाने में मदद कर रही है. उत्तराखंड जहाँ जहाँ गाडों में प्रचुर मात्रा में पानी है वहां घट्ट से पिसाई और बिजली उत्पादन किया जा सकता है. इस तरह से पहाड़ में कई जगह लाभ उठाया जा रहा है. पहाड़ के पानी का इस तरह उपयोग करना तर्कसंगत है.

(सर्वाधिकार सुरक्षित,उद्धरण, प्रकाशन के लिए कवि,लेखक की अनुमति लेना वांछनीय है)
जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिग्यांसू"
ग्राम: बागी नौसा, पट्टी. चन्द्रबदनी,
टेहरी गढ़वाल-२४९१२२
8.7.2009

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