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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Sunday, June 7, 2009

पंच्या उंगली बराबर नि हुन्दी

चुनो जनि ऐनी उमीद्वार कुकर जानी घर - घरु , दैलि दैलूमाँ रिंगण बैठा ! बाजा बाजा अपना दगड लनग्यात लेकी पौंचा गौ गौ .... एक उमिद्रार एक बुड्डी क पास जोकि क्या बुन बैठी ...

' -- बोडी ..समन्या .. खूब छाई "

वींन कपाल पर हाथ लगैकी, अप्णि याद दासता पर जोर डाली , देखि भाल्ली उत्तर दे " ___ ब़बा ..., मी पछ्यणू नि छो, कखी कु छे तू ???? "

" --मी , मी यख बिटि चुनो छौ लणु .. अर तिल ... , इबरी दा अपणु वोट मिथैई दीण " मी अगर जीती जौलना.... त, वख जैकी तेरी पन्सन लग्वाई दयुलू अर , जत्गा भी तेरी परेसानी चं वो दूर कै दयुलु ! "

बुड्दिल बोली ..... " ----- बबा ... , आज से ५ साल पैल एक ई छौ ! वैल भी इनी बोली छौ ! जितणा बाद उ आज तक कखी नज्जर नि आयु "


उमीदवार बोली ...'---- बोडी ........., पंच्या उंगली बराबर नि हुन्दी ....ईईईईईई ...?"

बोडील तपाक से उत्तर दे .... " ----- पर बाबु ... खांदी दों त, उ भी, सब्या एक हुये जन्दिनी ! "

पराशर गौड़

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