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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Monday, June 1, 2009

समधोळा

समधणी थै ली पैरिक, चम्म चमकणी,
नाक मा नथुली बुलाक, हल्ल हलकणी.......

समधणीन हाथ जोड़ी, सेवा लगाई,
गदगदू दन्ना भवीं मा, झट्ट बिछाई.

भवीं मा बैठ्यों, ह्वक्का भरि,
हाथ मा दिनि,
समधणी का दगड़ा बैठि,
चा पाणी पिनि.

समधणी सगोरया भारी,
पकोड़ी स्वाळी बणैन,
घरया घ्यू मा दाळी दगड़ा,
छक्कि छकिक खैन.

समधीजिन छक्कि पिलाई,
ह्विस्की अर् रम,
छ्वीं लगैन छक्कि छकिक,
मस्त ह्वैग्यौं हम.

समधणी का सौं क्या बोन्न,
सब्बि धाणी बिसरिग्यौं,
खट्टी मिठ्ठी खांदु खांदु,
समधोळा रमि ग्यौं.

सर्वाधिकार सुरक्षित,उद्धरण, प्रकाशन के लिए कवि की अनुमति लेना वांछनीय है)
जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिग्यांसु"
ग्राम: बागी नौसा, पट्टी. चन्द्रबदनी,
टेहरी गढ़वाल-२४९१२२
1.6.2009

2 comments:

  1. hahahah bheji
    aapki kavita padhi ki mitha apne samdini yaad aani cha, mere samdini seemarawat ke yaad

    ReplyDelete

आपका बहुत बहुत धन्यवाद
Thanks for your comments