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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Tuesday, February 3, 2009

उत्तराखंडी लेख / व्यंग्य / चुटकले


उत्तराखंडी लेख / व्यंग्य / चुटकले



एक चिट्ठी,परलोक बिटि

हे भारतबन्स्यूं!

एक न एक दिन सब्यून भग्यान होण। पाकिस्तान, चीन वळोन बि। अमरिका वळा क्य भग्यान नि होन्दन? कैन बोली नि होन्दन्? धर्तिमा क्वी इनु जीब नि जैन भग्यान नि होण। पर पाकिस्तान, चीन, अमरीका वळों तैं भग्यान होणा बाद भग्याना माटै क्वी किमत नि रै जान्दि। तौंकु तैं भग्यानो सरेल मट्टि छ। इलै सि भग्याना भला करम छंटेकि तैका बुरा करम ताबूत दगड़ा दफनै दिन्दन्।

पर हमारा जोगमा मट्टी छैं छ, छुट्टि नि। भग्यान होणा बाद हमारि कीमत ब़ जान्दि। तुमारा जानकार लोग बतलन्दन कि भग्यान होणा बाद भग्यानै मुखड़ि पर रौनक ऐ जान्दि। सरैल भुग्ये जान्दू। हडगा तड़तड़ा अर नाक लम्बी ह्वे जान्दि। हमुन बि, अपड़ा टैम पर फूलुन गंछीं भग्यानै साँग सज्दी देखी। भग्याना नौकु लम्बो गुणगान पस्तौ देण वळों का गिच्चों बिटि हमारु सुण्यूं छ। जब तलक सि भग्यान याद रै तब तलक छुट्टा बड़ा कारिजमा तैकि हन्त्या तैं द्यू धुपाणू सुंघैकि, नचान्दू देखी। लोग अपड़ा आँसू बौगैकि बोल्येन्दु सुण्यां छन्- हे पित्र परमेस्वर! तुम झणि कैं मुसीबतमा छां। तुममा डिकाण-डिसाण छैं बि छ कि ना। हम लैकि क्वी सेवा हो त बतला?

भग्यानो तनो आदर देखी हमारि बि कै दौं, अपड़ा ज्यूंदा ज्यू सांगमा लिटणे इच्छा ह्वे। पर अपड़ि साँग सज्यांणू तैं मोटि जिकुड़ि चहेणी छ। हमुन अपड़ा मुण्ड पर कफन त बांध दे पर खणी खाड उन्द मुंड कुच्याणू हमारै बस्ये बात नि रै। इलै सांगमा लेटण से पैली हम अपड़ि टंगड़ि दुसरि तरपां फरकै ग्यां।

वुन त भगवानै कैकि बि उमुर पक्कि कैकि नि रखीं। कागज-पत्तर कैका बि पक्का कैकि नि रख्यां। सब गोळ-मोळ सि हिसाब छ। क्वी बि, कै बि उमुरमा भग्यान ह्वे सक्दू। द्वी टंगड़ौकि लपाका बीच काल लुक्यूं छ। झणि कब लंगड़ि देकि अल्जै द्यो। इन बि नि कि सन्त्रीन् पैली म्वन अर मन्त्रीन बादमा। इन बि ह्वे सक्दू राजा भग्यान ह्वे जावु अर सन्त्री बच्यूं रावु। पर मुंडेण हमेसा सन्तरिन छ। क्वी बि राजा सन्त्रर्यू तैं मुंड मुंडदू नि सूणी। अमीरो तैं मुंड मुंडणू सब्बि तयार रन्दन। गरीबो तैं मुंड मुंडदि दवूं सब्बि कुणा कुमच्यरों लुकि जन्दन। दादा अर बुबा भग्यान होण पर नाती मुंडेन्दू। पर कै बि बुबा अर दादन नात्या भग्यान होण पर नात्यू तैं मुंड नि मूंडी। य बात थुड़ासि मनुन पकड़ि। मनुन मनुस्मृतिमा लिख्यूं छ कि अगर बुबा भग्यान ह्वे जावु अर दादा बच्यूं छ त बुबा दगड़ा दादौ बि सराध निब्टे द्या।

ज्यूंदामा कथगा दादौन्, नात्या हाथुन अपड़ू सराध करवै, तांकि त मन्वी जाणुन। पर सच बात या छ कि भग्यान होणु अपड़ा पक्यां बाळ क्वी नि दिखाण चान्दू। पर धर्तिमा धड़पकड़ौ तैं बिमारि हजार छन्। पराण चर्रि तरफां बिटि बिमार्यूंन ढ़क्यूं रान्दू। पर कै बि मर्दा बच्चै बिमारि पर हाथ उठाणै हिकमत नि। बस, जैं दवैमा बचणै गुंजैस जादा दिखेन्दि, लोग वीं दवै जादा खन्दन्। ठीक उन्नी जन्कि अगर तौळ किचील भरे जावु त एैंचै सीढ़ीमा टंगड़ू रख दिन्दन्। पर जब उमुर टुटि ऐ गे होवु, त दवैका सारा खड़ू कु रै साकि। अपड़ा समणि-समणि हमुन पैली एलोपैथी फेल होन्द देखी,फेर होम्योपैथी।

जड़ि घोटि-घोटि जुग जीती ऐ ग्यां। पर है-खैकि बि जग नि जीत सक्यां। काल मुख ऐथर बैठगि, कंठ मोर्दू-मोर्दू ऐगि। फिर्बि म्वरी-म्वरी मांड पेकि ब्वना रयां-हे राम! पापी पुट्ग्यू सवाल छ। चल माण ग्यां पेट पापी छौ। अन्धू छवु। निरभागि पेट तैं आड़ू-बेड़ू पछ्यणो ज्ञान नि रै। पर गिच्चा मथि आँखा, क्य काजळ लगैकि सजणू बैठ्यां छा। आँख्यूंन रोग किलै नि देखी? खैर, रोग मंुड बिटि चिब्टू चा खुट्टौं बिटि ,नुकसान त सरैलो ह्वे। सरेलमा क्वी मेलमिलाप नि रै । बचणै क्वी गुंजैस नि दिख्ये, फिर्बि लोळू मन टपराणू रै।

भग्यान होण सि पैली कुटुम्बदरिन तौंका हाथमा बाछ्यु पूंछ पकड़ैकि बोली-टक लगैकि सुण ल्या, आपस मित्रमा क्वी ल्यणा-द्यणि, तुमारा मनमा क्वी लालसा, ज्वा अज्यूं रईं होवु, भग्यान होण सि पैली बतलै द्या। पर तौंकि टक कक्खि हौरि चल ग्या। तौंका मुर्यां कंठ बिटि हमुन सूणी-अरे चुचौ! गौळा पर गासि लगीं छ। जरा मोर्दू-मोर्दू गौणौंकु सुर्रा पिल्ये द्या।

सुर्रो इन्तजाम तुम कर सक्दा छा। पर तुम समणा-समणि बोल ग्यां- बाइ द वे तौंकि सरदौ हम बखरु मार द्यां। त यांकि क्य गारन्टि कि सुर्रा पैकि तौंका कंठ खुल जाला। य तौंकि जिकुड़ि पर छपछुपि पड़ जालि। अरे मर्च मसाला त फुण्ड फूका, सि त हौरि बि ऐ जाला। पर कीला पर बन्ध्यूं बखरु त जान से जालु। इन बोलीे तुम जाणि-बूझी बौगा मार ग्यां।

सि भग्यान ह्वेनि। तौंका पिछा-पिछी कालन हम बि खगोड़्यां। सोचणा छा,फुका दुन्या छुटि,हाळ निब्टी। तुम है-नि-खैकि बचै ग्यां। पर इन सोची हम ध्वखामा रयां। ब्याळि नारद जी हमतैं बतलाणा छा कि मुख ऐथर तुम चिफळा छां पर पीठ पेथर छुर्रा घोपणा छां।

क्य, य बात सै चा कि भग्यान ह्वेकि बि हम द्यब्तौं से जादा काम आणा छां। बल, रासन कार्डमा नौ हमारु, रासन तुम खाणा छां। गाड़ि चलाणो लैसन्स हमारु, गाड़ि हमारा नौ पर, पर हैण्डल तुम घुमाणा छां। मस्टरोलमा दस्तखत हमारा, रुप्या तुम कमाणा छां। अर्जि हमारा नौकि, कर्ज तुम खाणा छां। नौ हमारु, फोटु हमारि, फर्जिर भोट तुम दे देणा छां। फिर्बि, बल तुम खुस नि दिखेणा छां। अन्ध्यरामा हमारु छैल देखी थुकणा छां। बेटी-ब्वारि, छुट्टा नौनौ पर झपेटु तुमारु लगणू, गाळि हमतैं देणा छां। चोरि-चकारिमा पकड़ेण पर, अफु पर हमारि हन्त्या गाड़ि जुत्ता हमतैं खवाणा छां। भग्यान ह्वेकि बि दुन्यामा भूत, पिचास, खबैस, बणणू क्य हमारै जोगमा लिख्यूं छवू?

अरे निरभाग्यूं! द्यब्तौंका भागो त होयु-होयु, तुम हमारा भागौ बि चबट्ट कैकि खै ग्यां। ब्यटौं, अब भग्यांन हुयां, हम सब्बि एकजुट ह्वेग्यां। सोच ल्या, हम मल्ली मंजिल, तुम तल्ली मंजिलमा छां। हम मथि बिटि, कबि बि तुमारा करम भरस्ट कर सक्दां। एैंचा द्यब्ता जब दिखला,तबै तबि दिख्ये जालि। इलै कन्दूड़ खोली सुणल्या, जु निरभागि पढ़ नि सक्दू, वेका समणि ईं चिट्ठी बाँच ल्या। फेर इख ऐकि इन नि बोल्यां,कैन आन्द दौं बतलै नि, खाली हाथ हिलान्दु परलोक ऐ ग्यां। हमारा नौ पर खयां-पियांकि गठड़ि चम्म बांधि लयां। नथ्र परलोकमा तुमारि खैर नि। अपड़ि टंगड़ि तुड़वाणे पूरी तयारि कैकि अयां।

तुमारु
एक परलोकवासी

नरेन्द्र कठैत
आसियाना
क्यूंकाले मौहल्ला
पौड़ी गढ़वाल।
मो0.9412934480


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समर्पित छ
ग़वाळि साहित्यकार
नरेन्द्र कठैत
को
यु ग़वळि व्यंग्य
(वूं ग़वळि भैबन्धों तैं, जु ग़वाळ अर ग़वाळ्यूं से दूर चली गेनी।)


रुजगार काँ नै है।

कट्यां दूबलै धौंणिमा कुर्सी डाळी वून बोली क्य रख्यूं ये पाड़मा?

हमुन पूछी क्य नी ये पाड़मा।

वून एक किनारा थूकी जबाब देअजि कुछ नै है।

हमुन अगनै तौंकी टोनमा बोलीकुछ क्या नै है इस पाड़ में? क्य सांस लेणू को खुली हवा नै है? छोयामंगरों को ठण्डु पाणि नै है? माटै कि साफ सुथरी गन्ध नै है? गौंगौळा नजीक है। आसपड़ोस, आपस मित्र है। याँ से बक्कि क्य चैये?

अजि हवा, पाणि, माटा ही सब्बि धणी नै होता। जिन्नगी ब़ाणे के लिए हौरि धाणि बि चैये। असली चीज है रुजगार। वो तो है ही नै ।

किसनै बोला रुजगार नै है?

काँ है तब?

क्य नैपाळि अर बिहारि पाड़मा तमाखू खैणी चबाणै आता है। सि बि त रुजगार करता है । खाता है, कमाता है, बच्यूं खुच्यूं नेपाळ बिहार भिज्ता है।

सि त मिनत मजूर है।

हम बि त भैर मिनत मजूर है। होटलूमा भाण्डा मंजाता है। य पहरा पर डण्डा बजाता है। साब लोग त इणती गिणती का है। पर ये बोलो कि खाणेकमाणे को बि सगोर चैये।

अजि सगोर तबि त हैगा जब कुछ रस्ता रैगा। बिना रस्ता का सगोर को काँ पैटाओगे।

अच्छा जे बताओ संकराचार्य जीले बद्रीनाथ अर केदारनाथ जाके कै करा?

कन कै करा? उन नै धरम को मजबूत करा।

पर ये त नै बोला था कि भगवान के ऐथर अमीर अलग अर गरीब अलग लैन में लगावो ।

तब अमीर अर गरीब की लैन किनै लगाई?

रूजगार नै। अर जरा इन बि बताओ, क्य भगवान के नौ पर होटल ़ाबा संकराचार्य जीन खोला?

तब वो होटल ढाबा किनै खोला?

रुजगार ने।

सूणों ज्यांज्यां से सड़क बद्रीनाथ, केदारनाथ जाते है वां सि लेके भगवान तक करोड़ो को रुजगार होते है। अब त भगवान जी को परसाद बिदेस तक बि जाते है।

कन क्वे?

रुजगार से।

अजि ये काम सबका बस का नै है?

किनै का नै है?

हमरा बस का त नै है।

बस जेही बात है कि पाड़ आधा त करम कना का बाद बि सरम से नै खाता है। अर आधा करम से नै धरम से जादा खाते है।

पर पाड़ में सब्बि धाण्यूंकि सुबिधा नै है।

जै दिन तुम गौं छोड़ कै सैर में गये थे तिस दिन बि तुमनें इनी बोला था। कि पाड़ में सुबिधा नै है। पर सैरमा ऐ के तुमनें क्य फरकाया। सैरमा ऐकी बि तुम गौं पर चिब्ट्यां राया। साक भुज्जी से लेकी चुन्नू झंगर्याळ तक गौं बिटि मेटिमाटि लाया। अल्लू तुमनें गौंमा बि थींचा अर सैरमा बि थींचता है। गौं का प्याज तुमनें मीट्ठू नै चिताया अर सैर के पिर्रा प्याज ने तुमको घड़िघड़ि रुलाया। अब तुमी जबाब देवो तुमनें सैर में क्य फरपाया?

भै नौनो को पढाया लिखाया रुजगार लगाया।

नौनौ को पढाया! क्य पढाया? ऐ बोलो तोता जन रटाया अर कबोतर जन उड़ाया। नौना तुमारि भोणी छोड़ी दुन्ये भगलोणीमा गाया। तुमुन तो सर्रा जिन्नगी दौड़ लगाया, हाय तोबा मचाया, अर आखिरी दां क्य कमाया? खप्पखप्प जिकुड़ा पर बलगम का कुटेरा।

पर भुल्ला !गौंमा अबि बि सब्यता नै है। जंगलीपना है।

भैजी!जाँ तक सब्यता का बात है तो सब्यता तो तुमनें बि जमा नै सीखा। बोलो कैसे?

कैसे?

-बुरू तो नै माणेगा।

नै-नै।

- अपड़ि फेमिली का बिलौज बिटाळ के कन्धौं तक लिजाणा सब्यता तो नै है। अर जाँ तक जंगल को सवाल है। चला माण गये गौंमा जंगली लोग रैता है। पर जंगल छोड़ के सैरमा ऐके बगीचा त तुमनें बि नै लगाया। हियाँ स्यामसुबेर तुम दुबलू छंट्याता है। गौं उजाड़ कै सैर लाया, अब दुयूंकि निखाणी कैके काँ जैंगे।

तौंने बोला दिल्ली देरादून जैगैं।

झूठ क्योंको बुलणा है,सि गये हैं। पर आज बि तख अगर तौं दुन्या का चौबाटे में छौळ लगता है तो पुजाणे घौर आता है। भैजी! सात धारों को पाणि त हमनें बि पबित्रर माणा है अर स्यो हमको खप बि जाता है। पर ताँ से अगनै खरण्यां पाणि पर तो जम्मा बि बरकत नै है। अब अगर सि आता है तो कोई चिन्ता नै है तिनका परोख्या पाणि हमनें अबि तक समाळी रखा है।

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