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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Monday, February 2, 2009

उत्तराखंड के लोकगीत

सिदुवा-बिदुवा

सिदुवा बिदुवा रामा छामा। द्वीक होला भाई छामा
जा भूलू बिदुवा रामा छामा। पंडाजी का पासा राम छामा
लोखूं कि बाखुयो रामा छामा। बोग्याळु पौंछींगे रामा छामा
हमारी बाखुयो रामा छामा। गंगाडु रै गैई रामा छामा
सौ बीसी बाखुयो रामा। नौ बीसी ढेबयो रामा छामा
जा भुलू बिदुवा रामा छामा। पंडत का पास रामा छामा
दीन ल्हृयैई प्यार रामा छामा। छांटी ल्हृयैई बारा रामा छामा
पैलागू बामण रामा छामा। जी रये जजमाना रामा छामा
के की चा तुरूड़ रामा छामा। क्या होली धाकीना रामा छामा
बोल्यै की नि औनू रामा छामा। पठ्यै कि क्या आया रामा छामा
हे मेरा बामण रामा छामा। गैण दीन बारा रामा छामा
क्वी शुक शुक्वारा रामा छामा। क्वी बुध बुहारा रामा छामा
बाँध मेरी माता रामा छामा। टोपूलि तमाखू रामा छामा
कुट्यैर्यू मा लूण रामा छामा। टु सतु सामळ रामा छामा
पैटण बैठिग्या रामा छामा। सिदुवा-बिदुवा रामा छामा
वे लौंचा बोग्याळू रामा छामा। आछर्यू गा देसूं रामा छामा
पैर्याली कामळी रामा छामा। भांगूला की त्यूखी रामा छामा
ऊनी को कामोट रामा छामा। टोपूली सुपेद रामा छामा
नौ गते बैशाख रामा छामा। पांसा की सी जोड़ी रामा छामा
बूण लगी माता रामा छामा। शुफल नि हूण रामा छामा
यती असगूना रामा छामा। घौरे बैठी हूण रामा छामा
आरस्यूं कू तैका रामा छामा। जौळी ग्याया बौळी रामा छामा
लुकूड्यों छुयौड़ो रामा छामा। नीलू ह्वेगी मैलू रामा छामा
पैटौंण पैटिग्या रामा छामा। रैदल सैदल रामा छामा
पैलि को बसेरू रामा छामा। पांगैरी उड्यारुं रामा छामा
ताबा को बसेरू रामा छामा। लब-कुशा का सुन रामा छामा
मामैळी बिछौंणू रामा छामा। टांटैरी गो खौणो रामा छामा
सिदुवा बिदुवा रामा छामा। पौंछण पौंछीग्या रामा छामा
बुरांसी भाबर्यू रामा छामा। निंगाळी का गैरों रामा छामा
अब लैगी बसेरू रामा छामा। उन्यैणी पातेळ्यंू रामा छामा
बेदनी बोग्यालूं रामा छामा। रूसौडू जोत्यैला रामा छामा
द्वी भायों की वखा रामा छामा। खाणी ह्वेगे पीणी रामा छामा
सुरैं डाळी छैला रामा छामा। सिदुवा ला बोली रामा छामा
जा भुलू बिदुवा रामा छामा। दौड़ी की ल्यायो दी रामा छामा
कूंकू डाळी पाणी रामा छामा। नौ नाळा मंगर्यू रामा छामा
चलीगे बिदुवा रामा छामा। मंगैर्यू का पासा रामा छामा
वाखा मीलना रामा छामा। छारा भै चानूण्या रामा छामा
वे ऐड़ी आंछरी रामा छामा। मंगैर्यू की भागी रामा छामा
तब ह्वेगी द्वीयूं का रामा छामा। वे कौल करार रामा छामा
वे बोल बचना रामा छामा। वे पैणी पीयेला रामा छामा
द्वी भाई पौंछीग्या रामा छामा। रतांगूळी खोड़ रामा छामा
ऐड्यंू की रटना रामा छामा। बिसरीग्या द्वी भै रामा छामा
लैगा पैणी छमोरे रामा छामा। बरखा का जोर रामा छामा
भांपा का सिमार रामा छामा। सिदुवा बिदुवा रामा छामा
स्यंू भेड़ बाखूयो रामा छामा। डूबी गैन बैख रामा छामा

(लोक इतिहास के अनुसार ‘सिदुवा और बिदुवा, दोनों सेम-मुखेम ह्यटिहरीहृ के राजा गंगू रमोला के पुत्र थे।गंगू कृष्णद्रोही था परन्तु कृष्ण द्वारा ‘राक्षस’ को मारने के बाद दोनों पराम मित्र हो गये। कृष्ण ने सेम-मुखेम को ही अपना आवस बना लिया और ‘नागर्जा‘ के नाम से स्थापित हो गये। सिदुवा-बिदुवा कृष्ण के परम मित्र माने जाते हैं और अन्यत्र उनकी गाथा भी अलग ढंग से है ह्यगोबिन्द चातक : गढ़वाली लोक गाथाएंहृ।यह लोकगीत चांचड़ी नृत्य शैली में चमोली जिले के दुसांध क्षेत्र से संकलित किया गया है़ इसके अनुसार सिदुवा-बिदुवा भेड़ पालक हैं जो अशुभ मुहर्त में आपनी भेड़-बकरियों को लेकर बुग्याल प्रवास कर लेते हैं और आंछरियों के खिलाफी के अपराध के कारम अपनी भेड़-बकरियों समेत दलदल में डूब जाते हैं। लोगों ने सिदुवा-बिदुवा को अपने आस-पास के परिवेश से जोड़कर गाथा को स्थानीय रंग में ढाल दिया है। स्थानीय नाम जैसे-पांगेरी उड्यार, लव-कुश का सैण ह्यमैदानहृ, बिसबाडी, सकन्याणी पातल, निंगाळी गैर, बेदनी बुग्याळ, रतांगुली खोड़, भांपा ह्यबम्पाहृ सिमार आदि इस गीत को सेम-मुखेम से अलग करके स्थानीय पशुचारकों के जीवन के समकक्ष खड़ा कर देता है। सिदुवा-बिदुवा नितान्त स्थानीय पात्र के तौर पर प्रस्तुत किये गये हैं)

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रोपणी गीत


बीच का रोपदारियों छांटो रोप्या सेरो, बासमती घणी रोप्यां ।
तोय मूंग ब्वारी के जाणी न बोल्या, बासमती घणी रोप्यां ।
स्वामी देनी बासूंड्या रैबार, बासमती घणी रोप्यां ।
भैंस के भ्याणी चन्दोला बिन्दोला, बसो राणी छानी आयां ।
तोय मूंग ब्वारी के जाणी न बोल्या, बसो राणी छानी आयां ।
स्वामी देनी बासूंड्या रैबार, बसो राणी छानी आयां ।
पींडों ले लाया नौ दोण नौ पाथा, बसो राणी छानी आयां ।
तोय मूंग ब्वारी के जाणी न बोल्या, बसो राणी छानी आयां ।
स्वामी देनी बासूंड्या रैबार, बसो राणी छानी आयां ।
गौड़ी ले भ्याणी सूरजू कौरों की, बसो राणी छानी आयां ।
तोय मूंग ब्वारी के जाणी न बोल्या, बसो राणी छानी आयां ।
पींडों ले लाया नौ दोण नौ पाथा, बसो राणी छानी आया ।
स्वामी न देनू बासूंड्या रैबार, बसो राणी छानी आयां ।


(धान के खेत में रोपाई हो रही है, बहुत सी महिलाएं खेत में धान की रोपाई मे जुटी है, दूर कहीं बांसुरी की आवाज सुनाई दे रही है। एक महिला दूसरी महिला से पूछती है कि बांसुरी में क्या बोला जा रहा है। दूसरी कहती है कि तेरा पति तुझे सन्देशा भेज रहा है कि हे रोपणी करने वाली मेरे खेत में रोपणी ढंग़ से करना-बासमती को खूब घना रोपना, मैं तुमसे छोटी बहू के नाते कुछ नहीं बोल पा रहा हूँ लेकिन मेरे खेत में बासमती घणी रोपना। जिस भैंस का माथा सफेद था वह चन्दोल बिन्दोला भैंस ब्या गई है। मेरी बसो रानी बसेरे के लिए छानी में आना, मैंने तुम्हें बहू समझकर कुछ नही बोला पर शाम को छानी में जरूर आना। तेरे स्वामी ने बांसुरी में रैबार दिया था कि भैस के लिए नौ दोण और नौ पाथा पिण्डा भी लाना। बसो तू छप्पर में जरूर आना क्योंकि वहां पर सूरज कुवंर नाम की गाय भी ब्या गयी है, उसके लिए भी नौ दोण नौ पाथा, पिण्डा लाना।)


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बसंत वर्णन

दैणा होई जाया बै सेळी धरती
दैणा होई जाया बै भूमीयाळा द्यौऊ
दैणा होई जाया बै माईऽऽमडूली
दैणा होई जाया बै रितू बसंता

दैणा होयां देबताओ उलामुला मासा
दैणा होयां देबताओ चुलामुला बारा
ऋतु बौड़ी अँग्या बै दाई जसो फेरो
ऋतु बौड़ी अँग्या बै बारूणी बगत

उलापैटा मासा बै बौड़ी कै नी औना
रितु फेरी बसंता बै फेर बौड़ी अँगे
सूकुअँ का सानणा मौली कै नी औना
हरीं भरीं सानणा बै फेर मौळी अँगे

कनु अँगे द्यब्ताओ चौपंथी चौखाळ
मौळणऊ लैगै बै चांचर की धूप
रितु चड़ो बासना रितु रितु बोना
रितु चड़ी बासनी मैता-मैता बोनी

अखोड़ा की फाग्यंू मा कफूवा बासलो
सांयो-सांयो बासा बै घूघूती घूरली
सेळा जैंता बारा बै सेळी सूरी बासा
माळनों की घूघूती पराबतूं अँगे

बारा चड़ी बासनी बार फूली जान
फूलणा लैगई बाटानों फ्यूंलड़ी
कनि फूली द्यब्ताओ जया-बिजया
यनी हूनी द्यब्ताओ वो रितु बसंता

याबा लैगई वो हरियां भादोओ
कनु अँगी द्यब्ताओ तरूणी असोज
फूलणाऊ बैठीग्या कुंकूंणी बांसुळी
फूलणाऊ बैठीग्या जया-विजया

फूलणाऊ बैठीग्या स्यैता सिरीताज
फूलणाऊ बैठीग्या रातूनों की लता
फूलणाऊ बैठीग्या सुर्जना का कौळ
फूलणाऊ बैठीग्या राई-बुराई

फूलणाऊ बैठीग्या स्यैता कंऊळे
फूलणाऊ बैठीग्या कौंला फ्योंणा कौंळा
फूलणाऊ बैठीग्या कौळा ब्रमी कौंळा
यनी हूनी द्यब्ताओ रितु बसंता
यनी हूना द्यब्ताओ उलामुला मासा


(उर्गम घाटी में ‘नंदा-सुनूल जात’ की गाथा में लोकगायकों द्वारा देवताओं को यह बसंत वणन सुनाया जाता है। चारों दिशाओं में, बसंत के स्वागत में ऊँचे बुग्यालों के ब्रह्मकमल,सूरज कमल, फेन कमल, जया-बिजया, श्रीताज आदि तमाम पुष्प खिल उठते हैं। लोकगीत के अनुसार बसंत के उलामुला मास यदि सुख से नहीं कट सके तो ऐसा बारूणी वक्त ह्यकठिन समयहृ सबसे बड़ा दुर्भाग्य है।बीते दिन लौटकर वापस नहीं आते है इसलिए हे देबो ॐ इस बसंत को सुखमय गुजार देना; धरती माता, भूमियाल, मंदिर, माई सभी का आशीर्वाद हमें चाहिए ताकि लोक के नरों-नारियों का यह अद्भुत बसंत सुख से गुजर सके।)

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